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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.७ रूपी अजीवप्रज्ञापना रसतः तिक्तरसपरिणता अपि१; कटुकरसपरिणता अपि२, कपायरसपरिणता अपि३, अम्लर सपरिणता अपि४, मधुररसपरिणता अपि स्पर्शतः कर्कशस्पर्शपरिणता अपि१, गृद्कस्पर्शपरिणता अपि२, गुरुपस्पर्शपरिणता अपि३, लघुकस्पर्शपरिणता अपि४, शीतस्पर्शपरिणता अपि९, उष्णस्पर्शपरिणता अपि६। संस्था (गंधओ) गंध ले (सुन्मिगंधपरिणया वि) सुगंधवाले भी हैं (दुभिगंधपरिणया वि) दुर्गधवाले भी हैं। (रसओ तित्तरसपरिणया वि) तिक्तरसवाले भी हैं (कड्यरसपरिणया वि) कटुकरसवाले भी हैं (कसायर सपरिणया वि) कपायरसवाले भी हैं (अंपिलरलपरिणया वि) आम्लरसवाले भी हैं (सहाररसपरिणया वि) मधुररसवाले भी हैं। _ (फासओ) स्पर्श से (कक्खडफासपरिणया वि) कर्कश स्पर्शवाले भी हैं (मउयफासपरिणया वि) मृदु स्पर्शवाले भी हैं (गरुयफासपरि: णया वि) गुरु स्पर्शवाले भी हैं (लहुयफासपरिणया वि) लघु स्पर्शवाले भी हैं (सीयफासपरिणया वि) शीत स्पर्शवाले भी हैं (उसिणफासपरिणया वि) उष्ण स्पर्शवाले भी हैं । (संठाणओ) संस्थान से (परिमंडलसंठाणपरिणया वि) परिमंडलसंस्थानवाले भी हैं (वसंठाणपरिणया वि) वृत्त संस्थानवाले भी हैं (तंससंठाणपरिणया वि) त्रिकोण संस्थान वाले भी हैं (चउरंससंठाण (गंधओ) यी (सुभिगंधपरिणया वि) सुजवणi ५४ छ (दुभिगंध परिणया वि) हुन् ५५ छे. (रसओ) २सथी (तित्तरसपरिणया वि) तित २स पाणi पY छ (कडुय रसपरिणया वि) ४७१। २सवाणां ५५ छ (कसायरसपरिणया वि) ४पाय २सवाणां ५ छ (अंबिलरसपरिणया वि) माटा २सय ५४ छे (महुररसपरिणया वि) મધુરરસના પરિણામવાળાં પણ છે. (फासओ) २५श थी (कक्खडकासपरिणया वि) ४४२ २५ vi पछ (मउयफासपरिणया वि) भृढ २५A i छ (गरुय फासपरिणया वि) शु३ २५श mi ५४ छ (लहुयफासपरिणया वि) लघु २५ प ५. छे (सीय फासपरिणया वि) 01 २५२ व ५५ छ (उसिण कालपरिणगा वि) ! સ્પર્શવાળાં પણ છે. (संठाणओ) संस्थानथी (परिमंडलसंठाणपरिणगा बि) ५२ स स्थान qui पण छ (पट्टसंठाणपरिणया वि) वृत्त सथान पाणां ५ छे (तंससंठाण
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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