SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० प्रज्ञापनासूत्रे अपि६। संस्थानतः परिमंडलसंस्थानपरिणता अपि१, वृत्तसंस्थानपरिणता अपिर, व्यस्रसंस्थानपरिणता अपि३, चतुरस्त्रसंस्थानपरिणता अपि४, आयतसंस्थान, परिणता अपि ५।२३। __ ये स्पर्शतः स्निग्धस्पर्शपरिणता स्ते वर्णतः कालवर्णपरिणता अपि१, नीलवर्णपरिणता अपि२, लोहितवर्णपरिणता अपि३, हारिद्रवर्णपरिणता अपि४, शुक्लवर्णपरिता अपिए। गन्धतः सुरभिगन्धपरिणता अपि १, दुरभिगन्धपरिणता अपि। भी हैं (मउयफासपरिणया वि) मृदु स्पर्शवाले भी हैं (गरुयफासपरिणया वि) गुरु स्पर्शवाले भी है (लहुयफासपरिणया वि) लघु स्पर्शवाले भी हैं (णिद्ध फासपरिणया वि) स्निग्ध स्पर्शवाले भी हैं (लुक्खफासपरिणया वि) रूक्ष स्पर्शवाले भी हैं। __ (संठाणओ) संस्थान की अपेक्षा से (परिमंडलसंठाणपरिणया वि) परिमंडल संस्थानवाले भी हैं (वसंठाणपरिणया वि) वृत्त संस्थानवाले भी हैं (ससंठाणपरिणया वि) त्रिकोण संस्थानवाले भी हैं (चउरंससंठाणपरिणया वि) चौरस संस्थानवले भी हैं (ओययसंठाणपरिणया वि) आयत संस्थानवाले भी हैं। ___(जे) जो (फासओ) स्पर्श से (णिद्धफासपरिणया) स्निग्धारणमनवाले हैं (ते) वे (वण्णओ) वर्ण से (कालवण्णपरिणया वि) काले वर्णवाले भी हैं (नीलकण्णपरिणया वि) नीले वर्णवाले भी हैं (लोहियवण्णपरिणया वि) लाल वर्णवाले भी हैं (हालिहवण्णपरिणया वि) पीले घर्णवाले भी हैं (सुकिल्लवण्णपरिणया वि) श्वेत वर्णवाले भी हैं। २५शवाज प छ (लहुयफासपरिणया वि) वधु २५ प ५४ छ (गिद्ध फासपरिणयावि) नि२५ २५श पi ५ छ (लुक्खफासपरिणया वि) ३६ २५श વાળાં પણ હોય છે. _ (संठाणओ) सस्थानथी (परिमंडलसंठाणपरिणया वि) परिभस संस्थान ami पy छे (वट्टस ठाणपरिणया वि) वृत्त संस्थानवाणi Y छ (तंससंठाण परिणया वि) सिस्थानवाणां पाशु छ (चउरंससंठाणपरिणया वि) योरस संस्थानवाज ५५५ छ (आययसंठाणपरिणया वि) मायत संस्थाना छे. (जे) मे (फासआ) २५श थी (णिद्वफासपरिणया) स्निग्ध परिणाम qti छ (ते) तेसो (वण्णओ) १ थी (कालवण्णपरिणया वि) २ाना पाय छे (नीलवण्णपरिणया) सीसा २ जना ५९४ छ (लोहियवण्णपरिणया वि) दास २गना पर छे (हालिद्दवण्णवरियणा वि) पी २ वाणां ५ छ (सुस्किल्लवण्ण परिणया वि) स३४ २२॥ ni ५५ छे.
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy