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________________ प्रमैयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.८८ सुस्थितस्य गौतमद्वीपनिरूपणम् ५८९ क्खेषेणं-जंबूद्दीवं तेणं अद्धकोणणउए जोयणाई चत्तालीसं पंच णउइभागे जोयणस्स उसिए जलंताओ' द्वादश योजनसहस्राणि-आयामविष्कम्भाभ्याम् सप्तत्रिंशद्योजनसहस्राणि नव चाऽष्टाचत्वारिंशानि योजनशतानि किश्चिद्विशेषोनानि परिक्षेपेण जम्द्वीपान्तेऽधै कोननवतीनि योजनानि सामा॑ष्टाशीति संख्यानि चत्वारिंशतं च पञ्चनवतिभागान् योजनस्य जलान्तात्-जलपर्यन्तभागाद् ऊर्ध्वमुच्छ्रित एतावान् जलस्योपरि प्रकटितो दरीदृश्यते । 'लवणसमुई तेणं-दो कोसे उसिए जलंताओ' लवणसमुद्रान्ते खलु द्वौ क्रोशौ यावज्जलान्ताद् ऊर्ध्वदेशे-उच्छितः एतावान् जलस्योपरिप्रकट इत्यर्थः, 'सेणं एगाए परमवरवेइयाए-एगेणं वणसंडेणं सव्यओ समंता तहेव वण्णओ दोण्हवि' स हि गौतमद्वीपः पावरवेदिकयैकया-वनपण्डेनैकेन च सर्वत्र सर्वासु दिग्विदिक्षु सर्वतोभावेन और कुछ कम ३७९४८ योजन का इसका परिक्षेप है 'जंबूद्दीवं तेणं अद्वेकोणणउए जोयणाई चत्तालीसं पंचणउतिभागे जोयणसहस्स जलंताओ उसिए' यह जम्वृद्धीप की दिशा में जम्बूद्वीप के अन्त में८८॥ योजन और एक योजन के ९५ भाग में से ४० भाग प्रमाण पानी से ऊंचा उठा हुआ है 'लवणसमुदं तेणं कोसे ऊसिए जलंताओ' तथा लवणसमुद्र की दिशा में लवणलमुद्र के अन्त में-यह जल से दो कोश तक ऊंचा उठा हुआ है 'से ण एगाए य पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता तहेव वण्णओ दोण्हवि' यह एक पद्मवर वेदिका से और एक वनषण्ड से चारों ओर घिरा हुआ है इन दोनों का वर्णन पहिले जैसा किया गया है वैसा ही है 'गोयमदीवस्स णं दीवस्स अंतो जाव बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' गौतम द्वीप के भीतर का भूमिभाग यावत् वहसमरमणीय है। લાંબે પહાળે છે. અને કંઈક કમ ૩૭૯૪૨ સાડત્રીસ હજાર નવસે બેંતાसीस योगन तर प२ि२५ छ. 'जंबुद्दीवं तेणं अद्धकोणणउए जोयणाई चत्तालीसं पंचणउइ भागे जोयणस्स जलंताओ उसिए' मा दीपनी शामi જંબૂદ્વીપના અંતમાં ૮૮ સાડી અઠયાસી જન અને એક એજનના ૫ पयामा मामा याजीस प्रमाण पाणीथी ५२ नी छ. 'लवणसमुई तेणं दो कोसे ऊसिए जलंताओ' तथा eqry समुद्रनी हिशामा समुद्रना मतमा पाथी मे उस यु नीले छे. 'से णं एगाए पउमवरवेईयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता तहेव वण्णओ दोण्ह वि' मा गौतमद्वीप मे પદ્વવર વેદિકાથી અને એક વનખંડથી ચારે બાજુથી ઘેરાયેલ છે. આ બન્નેનું वन पाईयां २ प्रमाणे ४२वामा सास छ, प्रभारी छ. 'गोयम
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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