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________________ ५८८ जीवाभिगमसूत्र यावन्नित्यः कुत्र खलु भदन्त ! मुस्थितस्य लवणाधिपतेः मुस्थिता नाम राजधानी प्रज्ञप्ता, गौतमद्वीपस्य पश्चिमेन तिर्यगसंख्येयान् यावदन्यस्मिल्लवणसमुद्रे द्वादशयोयनसहस्राण्यवगाह्य-एवं तथैव सर्व नेतव्यं यावत् सुस्थितो देवः ॥ इति ॥८८॥ ___टीका-'कहिण भंते ! सुटियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णामं दीवे पन्नत्ते' क खलु भदन्त ! सुस्थितस्य लवणाधिपते गौतम द्वीपो नाम द्वीप: प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पच्चयस्स पच्चत्थिगेणं लवणसमुदं वारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थणं सुटियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णामं दीवे पन्नत्ते' गौतम ! जम्बूद्वीपे द्वीपे खलु मन्दरपर्वतपश्चिमायां द्वादशयोजनसहस्राणि लवणसमुद्रमवगाह्याऽत्र खलु लवणाधिपसुस्थितस्य गौतमद्वीपो नाम द्वीपः प्रज्ञप्तः स च-चारसजोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणंसत्तालीसं जोयणसहस्साई नव य अडयाले जोयणसए किंचि विसेसोणे परि 'कहि णं भंते । सुट्टियस्स लवणाहिवहस्स गोयम दीवे णामं दीवे' टीकार्थ-हे. भदन्त ! लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव का गौतमद्वीप कहां पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! जंबुद्दीवेणं दीवे मंदस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं बारस ज़ोयणाई ओगाहित्ता एत्थणं सुटियस्स लवणाहिवइयस्म गोयमदीवे णामं दीवे पन्नत्ते' हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामके दीप में मन्दरपर्वत की पश्चिमदिशा में १२ योजन तक लवणसमुद्र में जाने पर जो स्थान आता है वहां पर लवणाधिपति सुस्थित देव का गौतम नामका द्वीप कहा गया है यह द्वीप 'बारसजोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं सत्ततीसं जोयणसहस्साई नव य अडयाले जोयणसए किंचि विसेसोणे परिक्खेवेणं' इस सूत्र के अनुसार १२ योजन का लम्बा चौडा है 'कहि णं भंते ! सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णाम' त्यादि ટીકાર્થ–હે ભગવન લવણસમુદ્રના અધિપતિ સુસ્થિત દેવને ગીતમ दी५ ४यां मावस छ १ मा प्रश्नना उत्तरमा प्रमुश्री ५ छ -'गोयमा !' जंबुद्दीवेणं दीवे मंदरस्स पव्ययस्स पच्चस्थिमेणं लवणसमुदं बारस जोयणाई ओगाहित्ता एल्थ णं सुत्थियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णामं दीवे पण्णत्ते' ७ गौतम! જંબુદ્વિપ નામના દ્વીપમાં મંદર પર્વતની પશ્ચિમ દિશામાં ૧૨ બાર એજન પર્યન્તની લવણસમુદ્રમાં જવાથી જે સ્થાન આવે છે. ત્યાં આગળ લવણાધિપતિ सुस्थित हेवन गौतम नाभन दीप छ, २मा दी५ 'वारस जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं सत्तकोसं जोयणसहस्साई नव य अडयाले जोयणसए किंचि विसेसोणे परिक्खेवेणं' या सूत्रपान, A VAT mmm......
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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