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जीयाभिगमम् 'अत्थेगइया पच्चायति' सन्त्येकका एवंविधा ये जीवा लवणोदधौ मृत्वा जम्बृद्वीपमागच्छन्ति, 'अत्थेगइया नो पच्चायति' सन्त्येकका जीवा नो प्रत्यायान्ति, स्वस्वकर्मवशवर्तितया जीवानां तथा तथा विचित्रगति सम्भवात् ।। ०॥७२॥
___ मूलम्-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जंबुद्दीवे दीवे गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं णीलवंतस्स दाहिणेज मालवंतस्स वक्खारपव्ययस्स पच्चस्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्ययस्स पुरथिमेणं एत्थणं उत्तरकुरा णाम कुरा पन्नत्ता पाईणपडीणायता उदीणदाहिणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया एक्कारस जोयणसहस्साई अट्ट वायाले जोयणसत्ते दोणि एकोणवीसइभागे जोयणस्स विखंभेगं तीसे जीवा पाईणपडीणायया दुहओ वक्खारपवयं पुट्रा पच्चथिमिल्लाए कोडीए पञ्चस्थिमिल्लं वनवारपव्वयं पुटा तेवणं जोयणसहस्लाई आयामेणं तीसे धणु पुटुं दाहिणेणं सर्टि जोयणसहस्साई चत्तारि य अट्ठारसुत्तरे जोयणसते दुवालस य एकूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पन्नत्ते ॥ उत्तर कुराएणं भंते! कुराए जंबुद्दीवे दीवे पच्चायंति' हे भदन्त ! लवणसमुद्र में वर्तमान जीव मर कर क्या जम्बूद्वीप में आते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! अत्थेगइया पच्चायति' हे गौतम ! कितनेक जीव ऐसे हैं जो लवणसमुद्र में मरकर जंबूद्वीप में आते हैं और 'अत्थेगइया' कितनेक जीव ऐसे हैं जो मर कर 'नो पञ्चायति' जम्बूढीप में नहीं आते हैं। क्योंकि बन्ध किये गये कर्मों द्वारा जीवों की गति विचित्र हुआ करती है ॥७२॥ दीवे पच्चायति' 3 मावन् पशुसमुद्रमा रहना। 4 मरीशुदायमा आवे छे? उत्तरमा प्रभुश्री ४३ छ -'गोयमा। अत्थेगइया पच्चायति હે ગૌતમ! કેટલાક જીવે એવા હોય છે કે જેઓ લવણ સમુદ્રમાં મરીને दीपमा भावे छे. मन 'अत्थेगइया' ८४ wो मेवा डाय छ
या त्यांची भशन 'नो पच्चायति' मूद्वीपमा पाछ। मापता नथी. કેમકે બંધ કરવામાં આવેલ કર્મો દ્વારા જીવની ગતિ વિચિત્ર પ્રકારની થયા ४रे छे. ॥ सू. ७२ ॥