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जीनाभिगमसूत्र समश्रेणीकं युगलं-द्वन्द्वं तेषां यन्त्राणि तैर्युक्तानीव तोरणानीति सम्बन्धः, 'अच्चिसहस्समालणीया' अचिःसहस्रमालनीयानि, अर्चिपां सहस्र मालनीयानिपरिवारणीयानि, अयमर्थः-एवं नाम प्रभासमुदायोपेतानि येनेत्यं संभाव्यते यथा नूनमेतानि न स्वाभाविकप्रभा समुदायोपेतानि किन्तु विशिष्टविद्याशक्तिमत्पुरुपविशेप प्रपञ्चयुक्तानीवाभान्ति तानि तोरणानि, 'रूवगसहस्सकलिया' रूपकसहस्रकलितानि रूपकाणां सहस्राणि तैः कलितानि युक्तानि, इति । 'भिसमाणा' दीप्यमानानि 'भिब्भिसमाणा'अतिशयेन दीप्यमानानि तोरणानि 'चवखुल्लोयणलेसा' चक्षुलोंकनले सानि, चक्षुः नेत्रं लोकने-अवलोकने लिसतीव-दर्शनीयस्वातिशयतः श्लिष्यतीव यत्र तानि चक्षुलोकनलेसानि 'सुहफासा' सुखपर्शानिसुन्दर लगते है 'विज्जाहर जमल जुयलजंतजुत्ताविव अच्चिसहस्समालणीया' इनके ऊपर समणि में विद्याधरों के युगलों के चित्र बने हुए है तथा ये तोरण स्वाभाविक प्रभासमुदाय से युक्त है तात्पर्य इस कथन का ऐसा है कि यद्यपि ये तोरण इस प्रकार से प्रभासमुदाय से युक्त है कि जिससे ऐसी संभावना होती है ये स्वाभाविक प्रभासमुदाय से युक्त नहीं है किन्तु विशिष्ट विद्याशक्ति शाली पुरुषविशेष के प्रपञ्च से युक्त हो रहे है 'रूवगसहस्सकलिया' रूपक सहस्रों से-सैकडों नाना प्रकार के चित्रों से-ये तोरण युक्त है 'भिसलाणा' अपनी प्रभा से चारों ओर चमकीले बने हुए है 'भिन्भिसमाणा' और ये इस प्रकार से विशिष्टरूप में चमकीले बने हुए हैं कि जिससे ये 'चक्खुल्लोयणलेसा' देखने पर मानों दोनों नेत्रों को आलिङ्गन सा करते हों उनसे चिपकने से ही इन आत्माओंका 'सुहफासा' स्पर्श सुख है 'सस्सिरीयरूवा' पसाइया ४॥ छ. 'विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ता विव अच्चिसहस्समालणीया' तेना ५२ सभશ્રેણીમાં વિદ્યારના યુગલેના ચિત્ર બનેલા છે. તથા એ તારણે સ્વાભાવિક પ્રભા સમુદાયથી યુકત છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે જો કે આ તરણે એવા પ્રકારની પ્રજા સમુદાયથી યુક્ત નથી. પરંતુ વિશિષ્ટ વિદ્યાશકિતશાળી ५३५ विशेषना अपयथा युत २७ २८ छे. 'रूवगसहस्स कलिया' ३५४ सहस्रोथी अर्थात् ४ी अने प्रायन यित्रोथी ये तारण। यु४त छ. 'भिसमाणा' पोतानी प्रमाथी थारे त२५ अमरित मनेसा छे. 'विभिममाणा' थे या पातानी प्रमाथी यमति मनेसा छ रेनाथी से 'चक्खुल्लोयणलेसा' तेन diar જાણે તે બન્ને નેત્રોને આલિંગન આપતા ન હોય તેમ જાણે તેમાં ચટિ જાયે 2. मे ताने। २५श 'मुहफासा' सुभई छ. 'सस्सिरीय रूवा, पासाइया४'