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shrutiar aar g. ३ उ. ३. सू. ६० विजयाया चतुर्दिक्षु वनपण्डादिकनि० १६६ 'च, 'उहूं उच्चतेणं' ऊधर्व मुच्चत्वेन, 'एकतीसं जोयणाई कोसं च ' एकत्रिशद् योजनानि क्रोशैकं च, 'आयाम विक्खभेण ' आयामो दैर्घ्य, विष्कम्भो विस्तारस्वाभ्याम्, 'अब्भूग्गयभूसियप्पहसिते तहेव' अभ्युद्गतोत्सृतप्रहसितः, तथैव-. वनपण्डवदेव, 'तस्स णं पासायवर्डिस गस्स - तस्य खलु मूलप्रासादावतंसकस्य, 'अतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते' अन्तर्मध्ये बहुसमरमणीयो भूमिभागः प्रज्ञप्तः प्रस्तुतः, 'जाव मणिफासे उल्लोए' यान्मणिस्पर्श उल्लोकः, ' से जहा नामए' [ इत्यादि भूमिभागवर्णनं मणिस्पर्शादिवर्णनं कर्तव्यम् ] 'तस्स णंबहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स' तस्य खलु बहुसमरमणीयस्य भूमिभागस्य, 'बहुमज्झदेसभाए' बहुमध्यदेशभागे, 'एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पद्मत्ता'अत्र बहुमध्यदेश भागे खलु एका महती मणिपीठिका प्रज्ञप्ता कथिता, तत्र मणियोजन का 'उ उच्चं तेणं' ऊंचा है तथा 'एगतीसं जोयणाई को संच आयामविraj' ३१ योजन और १ कोशका इसका आयाम लम्बा. पना और विष्कम्भ चौडाई है, 'अब्भुग्गय मूसियप्पहसिते, अतः यह ऐसा प्रतीत होता है कि मानों यह आकाशतल का ही अवलम्बन कर रहा है 'तस्स णं पासावडिंगस्स' इस प्रासादावतंसक के 'अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' मध्य में एक बहुतसम रमणीय भूमिभाग कहा गया है 'जाव मणिफासे उल्लोए' यहां पर मणियों के स्पर्श का और उल्लोक - चन्दरवा का वर्णन 'से जहा नामए' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा करलेना चाहिये, 'तस्सणं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स' इस बहुसमरमणीय-भूमिभाग के 'बहुमज्झदेसभाए' ठीक बीचों बीच के भाग में 'एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पन्नत्ता' एक बहुत वडी - मणिपीठिका कही गई है । 'सा च एगं जोयणं आयामविक्खंभेणं' उच्चत्तेण' या वाणी छे. अर्थात् ६२॥ साडी णासह योजननी या वाणी छे. तथा 'एकतीस जोयणाई कोसच आयामविक्रमेणं' ३१ मेडीस योजन मने गोड असना तेनेो मायाम-सभ्याई भने विष्णुल- होजा छे, 'अव्भुगयमूसियापहसिते' तेथी मे मेवु अतीत थाय छे लगे थे भामशताने भ अवामन पुरी रहेस छे. 'तरस णं पासायवडिंसगस्स' मा आसाहावत सउना ‘अंतोसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' मध्यमां मे धोन सभ अने रभाशीय भूभि लाग उडेस छे. 'जाव मणीणं फासे उल्लोए' मडीयां भजियोना स्पर्शना अने उसो४ थद्दश्वानु वार्जुन ' से जहा नामए' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा उरी सेवु ले. 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जरस भूमिभागस्स' मा महुस भरभागीय लूभिलागना 'बहुमज्झदेसभाए ' मरोर वयो वयना लागभां 'एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया
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