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________________ १६८ starfभगमसूत्रे वनानि अवलम्वनवाहाः [इति छाया ] 'पुरतो पत्तेयं पत्तेयं पुरतोऽग्र मागे प्रत्येकं प्रत्येकम् 'तोरणा पण्णत्ता' छत्ताइछत्ता' तोरणानि प्रज्ञप्तानि छत्रातिच्छ त्राणि, ( तोरणादीनां वर्णनं पूर्ववदेव कर्तव्यम् ) ' तस्स णं उवरियालयणस्स उपि' तस्य खलु - उपकारिकालयनस्योपरि- ऊर्ध्वभागे, 'बहुसमरमणि जे भूमिभागे पण्णत्ते- 'बहुसमरमणीयो भूमिभागः प्रज्ञप्तः कथितः, 'जाब मशीहिं उबसोभिए' यावत् मणिभिरुपशोभितः, 'मणि वण्णओ गंध-रसफासो' - मणिवर्णको गन्धरस स्पर्शाः [अत्र मणिवर्णनं कर्तव्यम् ] तथा मणीनां वर्ण- गन्ध-रस स्पर्शा अपि वर्णनीयाः । 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स' तस्य खलु बहु समरमणीयस्य भूमिभागस्य, 'बहुमप्रदेसभाए' बहुमध्यदेशभागे, 'एत्थ णं' अत्र बहुमध्यदेश भागे खलु, 'एगं महं मूलपासायवडिलए पनते' एको महान् मूलप्रसादाऽतंसकः प्रज्ञप्तः– कथितः, 'से णं पासायवर्डिसए' स खलु मूलप्रासादाsवतंसक', 'वावट्ठि जोयणाई अद्ध जोय णं च' द्वापष्टिर्योजनानि - अर्द्धयोजनं के ऊपर एक एक है यहां पर तोरणादिकों का वर्णन पहिले की तरह ही करलेना चाहिये । 'तस्सणं उचरियालयणस्स उपि' इस उपकरिका लयनरूप विश्रामस्थल के ऊपर का भाग 'बहुसमरमणिज्जे भूमिभागेपण्णत्ते' बहुसम होने से बहुत ही रमणीय है । यह भूमिभाग 'जाब मणीहिं उवसोभिए' यावत् मणियों से अलङ्कृत है । 'मणिवण्णओ गंधरसफासो' यहां मणियों के गन्ध रस और स्पर्शके वर्णन के सम्बन्ध में कथन करना चाहिये 'तरसणं बहुसमरमणिज्जस्स' भूमिभागस्स' इस बहुसमरमणीय भूमिभाग के 'बहुमज्झदे सभाए ' ठीकबीचों बीच के भाग में 'एवं महं मूलपासायवर्डिसए पण्णत्ते' एक वहुत वडा मूल प्रासादावतंसक है 'सेणं पासायवडिलए' यह मूल प्रासादावतंसक 'बावहिं जोयणाई अद्धजोयणं च' ६२ योजन तथा आधे I सेवु लेो. 'तस्स णं उयरियालयणस्स उप्पि' मे पारिशसयन ३५ विश्राम स्थाननी उपरना लाग 'बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' धणे समहोवाथी धागो रभशीय छे. या लूभिलाग 'जाव मणीहिं उवसोभिए' यावत् भज़ियोथी सुशोलित छे. 'मणिवण्णओ गंधरसफासो' मडियां भशियोना गंध रस भने स्पर्शना वर्णुन संबंधां थन १२वु लेहये. 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स' मा महु सभरभाशीय लूभिलागनी 'बहुमप्रदेसभाएँ' मरोमर मध्यलागभा ‘एगं महं मूलपासायवर्डिसए पण्णत्ते' ये धागो मोटो भूसप्रासाठी पतंस छे. 'से पासायवर्डिस' भा મૂલ आसाहावतंस 'घावट्ठि जोयणाई अद्धजोयणंच' १२ मास योजन भने अर्धायोजननीं 'उड़ढ'
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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