SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1588
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाभिगमसूत्रे गुणा' अप्रथम समय तिर्यग्योनिक जीव अनन्तगुणें अधिक हैं / 'सेतं दसविहा सब जीवा पण्णत्ता' इस प्रकार से यह विवेचन दस प्रकार के सर्व जीवों के सम्बन्ध में किया गया है इस विवेचन के समाप्त होने पर 'से तं सव्व जीवाभिगमे' सर्व जीवाभिगम प्रतिपादित हो जाता है / जीवाभिगम सूत्र समाप्त हुआ और उसकी यह टीका भी समाप्त हुई ॥सू० 155 // श्री जैनचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलाल व्रतिविरचित जीवाभिगम सूत्र की प्रमेयद्योतिनि व्याख्या में ... ॥दसवीं प्रतिपति समाप्त // 10 // छ / सनत पधारे छे. तेना 42di 'अपढमसमय तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा' मप्रथमसमयमा त भान तययानि: / मन तग धारे छे. 'से तं दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता' मा प्रभारी मा विवेयन इस प्रा२ना सव वाना समयमा ४२वामा सावट छ. मा विवेयन समास थdi 'सेत्तं सव्व जीवाभिगमे' स मिमनु प्रतिपादन पूर्ण 2 गयेर छे. ॥सू. 155 // શ્રી જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્ય શ્રી ઘાસીલાલ વ્રતિવિરચિત વાભિગમ સૂત્રની પ્રમેયોતિની ટીકાની દસમી પ્રતિપતિ સમાસ 10 જીવાભિગમ' સૂત્ર સમાપ્ત
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy