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રિટ
जीवाभिगमसूत्र उत्कर्पणाऽष्टादशपल्योपमानि पूर्वकोटिपृथक्त्वाऽभ्यधिकानि एकेनादेशेन-जघन्येन पूर्ववत्-उत्कण चतुर्दशपल्योपमानि पूर्वकोटि पृथक्त्वाऽभ्यधिकानि, एकेनाऽऽदेशेन जघन्येन पूर्ववत् उत्कर्पण पल्योपमशतं पूर्वकोटिपृथक्त्याऽभ्यधिकम्, पल्योपम की कायस्थिति काल सावित हो जाता है 'एक्का देसेणं जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओचमाइं पुन्चकोडी पुहुत्त मन्भहियाई' किसी एक कथन की अपेक्षा स्त्रीवेद की कायस्थिति का काल जघन्य से तो एक समय का है और उत्कृष्ट से पूर्वकोटि पृथक्त्वाधिक १८ पल्योपम की है यह इस प्रकार से समझनी चाहिये जैसे-कोई जन्तु पूर्वकोटि प्रमाण की आयुवाली नर स्त्री के रूप में या तिर्यम् स्त्री के रूप में पांच या छह बार उत्पन्न हो गया फिर वहां से मर कर वह ईशान देव लोक में दो बार उत्कृष्ट स्थिति वाली परिगृहीत देवियों के रूप में उत्पन्न हो गई तो इस कथन वादी के मत से इस वेद की कायस्थिति का काल पूर्वोक्त रूप से सध जाता है तृतीय आदेश की अपेक्षा इस वेद की कायस्थिति का काल जघन्य से तो एक समय का है-और उत्कृष्ट से 'चउद्दस पलिओवमाई पुव्वकोडि पुहुत्तमन्भहियाई पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक १४ पल्योपम का है। यह इस तरह से जानना चाहिये-पूर्वकोटि प्रमाण आयु वाली नर स्त्री या तिर्यक स्त्री के रूप में कोई जीव पांच या छह बार उत्पन्न ११० मे से इस पक्ष्या५मनी यस्थितिना पण सामित थ य छ. 'एकादेसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अद्वारस पलिओवमाई पुत्रकोडी पुहुत्त. मन्भहियाई' र ४ ४थननी अपेक्षाथी खीवनी ४यस्थितिना धन्यथी તે એક સમયને છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વકેટિ પ્રથકૃત્વ અધિક ૧૮ અઢાર પપમાને છે. તે આ રીતે સમજવો જોઈએ જેમ કે-કઈ જીવ પૂર્વકટિ પ્રમાણુની આયુષ્ય વાળી પુરૂષ સ્ત્રીના રૂપથી અથવા તિર્યંચ સ્ત્રીપણાથી પાંચ અથવા છ વાર ઉત્પન્ન થઈ જાય તે પછી ત્યાંથી મરીને તે ઈશાનદેવ લોકમાં બે વાર ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ વાળી પરિગ્રહીત દેવિ પણાથી ઉત્પન્ન થઈ જાય તે આ કથનકારના મતથી આ વેદની કાયસ્થિતિને કાળ પૂર્વોક્ત પણાથી સિદ્ધ થઈ જાય છે. ત્રીજા આદેશની અપેક્ષાથી આ વેદની કાયસ્થિતિને કાળ જઘન્યથી तो २४ सभयन। छे. मने अष्टथी 'चउदस पलिओवमाइं पुब्बकोडि पुहुत्तमभहियाई पू ट पृथ३-१ मधिर १४ यौह पक्ष्योपमन। छे. ते मारीत
સમજવું–પૂર્વકેટિની આયુષ્યવાળી પુરૂષ સ્ત્રી અથવા તિર્યંચ સ્ત્રીના રૂપથી . કેઈ જીવ પાંચ અથવા છ વાર ઉત્પન્ન થઈ જાય અને તે પછી ત્યાંથી મરીને