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________________ बीचाभिगमसो ताम्रपत्रादिषु सामग्रीविशेषेण घोलितं मपी भवति, 'मसीगुलियाइ वा मपी. गुटि केति न घोलितकाजलगुटिका 'सबलेइया' गवलकमिति बा गवलं महिपम्य शृङ्गम् तदपि चोपरितनावग्भागापसारणेन द्रष्टव्यं, तत्रैव विशिष्टस्य कालिम्नः संभवादिति, 'गवलगुलियाइ वा गवलगुटिकेति वा तस्यैव महिपशृगस्य निविदा तरसारनिवतिता गुटिका गवलगुटिका 'ममरेइ वा भ्रमर इति वा, 'भमरावलि. याइ वा' भ्रमरावलिकेति वा, भ्रमरावलिका भ्रमरपङ्क्तिः : 'भमरपतंगसारेइ वा' भ्रमरपतनसार इति वा, भ्रमरपक्षान्तर्गतो विशिष्टकालिमोपचितः प्रदेशः 'जंबू फळे वा' जम्बृफलमिति वा तत्र जम्बूफलं 'जामुन' इति प्रसिद्धम, 'अदारिठेइ वा' आरिष्टः कोमलकाकः, 'परपुढेइ वा' परपुष्ट इति वा पर पुष्टः ताम्रपाशदि में एकट्ठा करके जब उसे किमी सामग्री के साथ घोल दिया जाता है-तम यह विशेष रूप से काला होकर मपी काली स्याही के रूप में आजाता है इसे ही मपी कही गई हनी लिये यहां काजल को दृष्टान्त कोटि में रग्वागया है 'मसी गुलियाइ वा जैमी काली मपी की गुटिका होती है 'गदल' जैमा छाला भलका होता है-भैस के मींग की उपर की खाल निकाल देने पर वह विशेप कृष्णवर्ण का होता है--इसीलिए इहरे यहां दृष्टान्तकोटि में रखा गया है 'गवलगुलियाइ वा' जैसी काली गवलगुटिक्षा होती है यह गलगुटिका महिष के शृङ्ग के निविडतर रार भाग से निर्तित होने से विशेष कालिमा बाली होती है 'भमरेहवा' जैला काला भ्रामर होना है। 'भमरावलियाइ वा' जैली काली भ्रमर पंक्ति होती है 'अमरपतगयनारे वा' जैसा भ्रमर के पक्ष के अन्तर्गतप्रदेश विशिष्टकालियाचाला होता है जंफलेद वा' जैमा काला जामृन का फल होता है 'अदारिद्विति वा' जैसा काला સાથે મેળવી દેવામાં આવે છે, ત્યારે તે વિશેષ પ્રકારે કાળુ બનીને ચમકે છે. અને તેને પી કહે છે. તે બતાવવા અહી કાજળને દૃષ્ટાંત કટિમાં લીધેલ 2 'मसीगु लयांडवा' भसीनी गुटि-गाणी २वी आणी हाय छे. 'गवल' ભેંસ સ ગ જેવું કાળું હોય છે જે સના સી ગડા ઉપરની ખાલ કાઢી લેવાથી એ વિશેષ પ્રકારથી કાળા દેખાય છે તેથી જ તેને અહીં દષ્ટાંત તરીકે ગ્રહણ २ 'गवलगुलियाइवा' रेवी जी गरिय छे. मागसटि ભેંસના મી ગડાના એક્રમ સારભાગ રૂપ હેવાથી વિશેષ કાળાશ વાળી હોય ॐ भमरे युवा' २वा आणे। सभ। लेय छ, 'भमरावलियाइवा' सभमानी ५ठिती आणी डाय छ ‘भमरपत्तगयसारेइ वा' सभामेनी पांमनी - २२ मा म विशेष प्रा२नी ४ाश वाणासाय छे, 'जबूफळेइवा' 'मुस २१॥ tणा हाय छे. 'अदारिद्वेवा गानु परयुगपुराणु सत्य छ, परपुढेइवा'
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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