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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ ७.३ सु.५७ औत्तरदिग्वय॑सुरकुमारनिरुपण ५४३ देवसहस्सा पण्णत्ता' माध्यमिकाया द्वितीयस्यां चण्डाभिधानायां पदि कतिकिपसंख्यकानि देव पात्राणि २ कानि 'जाच बाहिरियार परिसाए कह देदिसया पण्णत्ता' यावद् बाह्यायां पर्षदि कति देवीशतानि प्रजातानि, अत्र यावत्पदेन 'वाहिरियाए परिपाएकाइ देवसहस्सा, अमिरियाए परिसाए का देविसया, मज्झिमियाए परिसार कइ देविषया' इति सग्राहयम् । बाहवारा तृतीयस्यां जाताभिधानायां पषदि कति देवसहस्राणि प्रज्ञप्तानि, तथा-अभ्यन्तरिकायां समितायां पर्ष दि कति देरी शतानि प्रज्ञप्तानि, माध्यमिकायां चण्डायां पदि कति देवीशतानि प्रनप्लानि तथा बाहयायां तृतीयस्यां जाठामिधानार्या पर्षदि कति देवी शतानि प्राप्तानीति प्रश्नः भगवानाह-'योयमा' इत्यादि, 'मोयमा' हे गौतम ! 'वलिस्सण इरोयणिदस्स वइरोयणरन्नो' वले खलु वैरोचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य 'यभितरियाए परिसाए वीसं देवहस्ता पन्नत्ता' आभ्यन्तरिका कितने हजार देव कहे गये हैं ? 'जाब वाहिरियाए परिसाए कह देवि. सया एन्नता' बाह्यपरिषदा के देवों की संख्या के प्रश्न को लेकर वाह्य परिषदा के देवियों के प्रश्न सक का पाठ यहां लेना चाहिये जैसे'वाहिरियाए परिसाए कहदेव सहस्सा पनत्ता' इत्यादि । बाह्य परिपदा में कितने हजार देव कहे गये हैं ? तथा वैरोचनेन्द्र वैरोचनराजवलि की आभ्यन्तर परिषदा में कितनी सौ देवियां कही गई हैं ? मध्यमा परिषदा में कितनी सौ देवियां कही गई है तथा बाह्य परिषदा में कितनी सौ देविणं कही गई है। इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते-गोयमा यलिसणं वइरोणिदस बहरोषणरन्नो अभितरियाए परिसाए वीसं देवसहरला पणत्ता' हे गौतम रोचनेन्द्र वैोवनराजलि की आय. परिसाए कइ देव सहस्प्या एण्णत्ता' ७ भगवन् वैशयनेन्द्र शयन मास छन्द्रनी भायन्त२ परिषहामा nem२ हेवे। हेपामा मावेस छ ? 'जाव बाहिरियाए परिसाए कइ देविसया पण्णत्ता' मा ५विषहान वानी सध्याना પ્રશ્નથી લઈને બાહ્ય પરિષદાની દેવિશેની સંખ્યાના પ્રશ્ન સુધનો પાઠ અહિયાં ग्रहय ४२ ४. म 'बाहिरियाए परिसाए वइ देव सहस्सा पण्णत्ता' ઈત્યાદિ બાહ્ય પરિષદામાં કેટલા હજાર દે કહેવામા આવેલ છે ? તથા વૈરેચનેન્દ્ર વૈરાચનારાજ બલીન્દ્રની અ શ્વતર પરિષદામાં કેટલા સો દેવિયે કહેલ છે? મધ્યમ પરિષદામાં કેટલા સે દેવિ કહેવામાં આવેલ છે? તથા બાહ્ય પરિષદામાં કેટલા સો દેવિ કહેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ४ छ । 'गोयमा! व लस्स ण वइरोयणि दस्स दरोयणरण्णा अभितरियाए परिसाए वीसं देव सहस्सा पण्णत्ता' हे गौतम ! वैश्यनेन्द्र वैशेयनराकर
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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