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________________ श्रीमद यथोक्त क्रमेणाभ्यन्तरिकादि व्यवहारहारणं कविनम्, सम्मति=पकरणमुप हर माह से तेपण" इत्यादि, 'से ते नोमा !' तेनान गौतम | एवमुच्यते = 'चमरसणं अदिस अनुकुमारी' मरम्य सद असुरकुमारेन्द्रस्याम्कुमारराजस्य 'तो परिमाओ पाओ' तिस्रः पर्षः मज्ञताः 'समिया चंडा जाया' समिता चण्डा नाटा' मिया' आम्प after समिता 'मसिमिया चंडा' माध्यमिका नष्ठा 'चाहिरिया जाया' वाता जाता अत्र संग्रहणी गाथाद्वयं भवति- ७३८ K 'चडवीस वीसा. पत्तीदेवर | घुट्टा तिग्नि का अड्डा जाय देनिसा ||2|| अाज्जाय दोनिय दिपदियं प्रमेण देन दिई । पळियं दिण्डूमेश अद्धी देण परिला ॥२॥ चतुर्विंशतिराविंशतिहासहस्राणि देवनमस्य । az aquila (340) sifo (300) तथाऽर्द्ध तृतीयानि (२५०) देवीशतानि ॥१॥ भर्द्ध तृतीयानि (२) च (२) द्वप पल्योपमं (१) कमेण देवस्थितिः । पल्यं द्वयर्थ (१||) मेकमर्द्ध (II) देवीनं पप |२| उतिच्छाया ॥ माया देवाविंशतिः सहस्राणि द्वितीयस्यां सभायां देवा अा सहस्राणि तृतीयस्य सभार्या देवाः हाकित्सामाणि देव्यय प्रयमायां सार्वत्रिसहस्राणि द्वितीयस्यां देव्यखीणि सरस्राणि तृतीयस्यां देवः सार्द्धं द्विसह + नहीं होता है इस पर घमर का मध्यम रूप से ही गौरव रहता है आभ्यन्तर परिषदा पर उत्तम रूप से गौरव रहता है पाय परिषदा के साथ मर कर्तव्य कार्य की पर्यालोचना नहीं करता है केवल उसे आलो. चित कार्य को संपादन करने का ही वह आदेश देता है हम तरह से इन तीन सभाओं के नाम निर्देश होने का कारण है इन तीन सभाओं में देवों की एवं देवीयों की संख्या तथा उनकी स्थितियों की संग्रह करके प्रकट करने वाली दो गाथाएं है 'चवीस' इत्यादि । इन दोनों પર ચમરેન્દ્રનુ મધ્યમ રૂપથી જ ગૌરવ રહે છે, આભ્યન્તર પરિષદા પર ઉત્તમ રીતે ગોરવ ડાય છે. બાહ્ય પરિષદાની સાથે ચમઈન્દ્ર ન-કાયના વિચાર કરતા નથી. કૈવલ વિચાર કરવામાં આવેલ કાર્યને સ'પાતિ કરવાના આદેશ જ તેને આપે છે. આ કારને લઈને આ ત્રણ સભાએાના નામ નિર્દેશ થયેલ છે. આ ત્રણે સભાના દેવા અને દૈવિયાની સંખ્યા તથા તેઓની स्थितिमा भने अगर ४२वावाणी में गाथाओ हे 'चटवीट' त्याहि
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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