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________________ प्रमेयसिका टीका प्र. ३ उ.३ ६.४५ देवस्वरूपवर्णनम् ૭૨. जाव विहरइ' एवं यथा स्थानपदे ज्ञापनाया द्वितीयपदे कथितं तथाऽपि ज्ञातव्यं यावच्चमरस्तत्र असुरकुमारेन्द्रः अमुरकुमारगजः परिवसति यावद विहरतीति । अत्र - 'गोयमा ! जंबूद्दीवे दीवे' इत्यारभ्य 'दिव्वाई भोगमोगाई भुंनमाणे विहर' इति पर्यन्तं दाक्षिणात्यासुरकुमारवक्तव्यता सर्वाऽपि - प्रज्ञापनायाः स्थानपदोक्ता ग्राह्येति ॥०४५|| पूर्व चमरसूत्रे 'ति परिमाणं' इत्युक्तम्, वतश्च १रस्य परिषद्विशेपपरिज्ञानाय सूत्रमाह-'चमरस्त णं भंवे !' इत्यादि, मूलम् - चमरस्त णं भंते ! असुरिंदस्स असुररन्नो कइ परिसाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तओ परिलाओ पन्नताओ तं जहा - समिया चंडा जाया, अभितरिया समिया मज्झिमिया डा बाहिरिया च जाया । चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स यह पृच्छा शब्द से ग्रहण किया जाता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते है ' एवं जहा ठाणपड़े जाव चमरे तत्थ असुर कुमारि देवा असुर कुमारराया परिवार 'जाव विहरह' हे गौतम इस प्रकार जैसा प्रज्ञापना के स्थानपद में कहा गया है वैसा ही यहां पर भी जान लेना चाहिये यहां तक कि वहां चमर असुरेन्द्र असुरकुमार राजा रहता है। इसका पूरा वर्णन यहाँ समझना चाहिये यहां तक कि 'गोपमा' 'जंबूद्दोवे दीवे' यहां से लेकर वह चमर असुरेन्द्र असुरकुमार राजा 'दिव्वाई भोग भोगाइ भुंजमाणे विहरई' दिव्य भोग भोगों का अनुभव करता हुआ रहता है यहां तक दाक्षिणात्य असुरकुमारों का सब वर्णन प्रज्ञारना के स्थान पदोक्त यहां भी समझ लेना चाहिये | सूत्र - ४५ ॥ ઉપસ્થિત કરવામા આવેલ છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમા પ્રભુશ્રી કહે છે કે વ ના ठाणपदे जाव चमरे तत्थ असुरकुमारिंदे असुरकुमारराया परिवसइ जाव विहरइ' હે ગૌતમ આ રીતે જે પ્રમાણે પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના સ્થાનપદમાં કહેવામાં આવેલ છે તેજ પ્રમાણેનુ કથન અહીયાં પણ સમજી લેવું તે કથત ચમર અસુરેન્દ્ર મસુરકુમાર રાજા હૈાય છે. આટલા સુધીનુ' પુરે પુરૂં અહિયા સમજી લેવુ अर्थात् प्रलुश्री गौतमस्वामीने उत्तर भापता 'गायमा । ज बुद्दीवे दीवे' मे शब्द प्रयोगधी मारलीने ते समर असुरेन्द्र असुरकुमार राल 'दिव्वाई' भोग भोगाई भुजमाणे विहरइ' द्विव्य लोग लोगोंनो अनुभव उरता था त्यां रहे છે. આટલા સુધી દક્ષિણાત્ય અસુરકુમાર દેવેનું પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના સ્થાનપદમાં કહેલ તમામ વર્ણન અહીયા પણ સમજી લેવું ૫ ૪ા
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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