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________________ દુષ્ટ fter मिगमसूत्रे स यथा नामऊः 'चाउरंत चक्क हिस्स' चातुरन्तचक्रवर्तिनः चतुर्षु अन्तेषु समुद्र जय हिन्द परिच्छिन्नेषु चक्रेग - चक्रवत्सर्वतः समन्ताद्वर्तितुं शीलं यस्य स तथा तस्य 'कल्लाणे पत्ररथरणे' कल्याणमेकान्त सुखावहं मदरभोजनं विशिष्ट भोजन 'सयनहरू निफन्ने' जतसहस्रनिष्यन्नम् लक्षगोक्षीरसंपादितम्, तथाहिचक्रवर्त्ति सम्वन्धिनीनां - पुण्ड्रेक्षु वारिणीनामनातङ्कानां गवां लक्षस्य यत्क्षीरं तस्य पञ्चाशत्सहस्र गोभ्यः पानं दीयते एवमर्द्धाद्वक्रमेण पीतगोक्षीराणां गवां पर्यन्ते यावदे या गोः सम्बन्धि यत् क्षीरं तत्प्राप्तकलमशाल परमान्नरूपमनेकसंस्काइक द्रव्य मिश्र यद् भोजनं तत् फल्पाणमवर भोजनं वयते, तद् या शास्वादकं भवेत् ताशास्त्र दोपेतम् पुनस्तत् कीदृरा ? इत्याह- 'वणेणं उबवेए' वर्णेनाति शायिना शुक्लेनोपपेतं युक्तम् 'गंधेणं उव' गन्धेनातिशायिना सुरमिनोपपेतं हैं- 'गोमा ! से जहा नामए चाउरंत पक्वट्टिस्स कल्लाणे पवरभोपणे मतसहल निफन्ने चणेणं उचदेषु गंधेणं उदवेष, रसेण उच ए फालेणं उबवेए' जैसा चातुरन्त चक्रवर्ती का भोजन जो कल्याण भोजन के नाम से प्रसिद्ध है वह चक्रवर्ती का कल्याण भोजन इस प्रकार होता है - चक्रवर्ती की ही गाये हों और वे पुण्ड़ जाति के उत्तम क्षु को चरने वाली हों शरीर में नीरोग हों वैसी एक लाख गायों का दूध पचास हजार गायों को पिलाया जावे, और पचास हजार गायों का दूध पचीस हजार गायों को पिलावे इस तरह से आधी गायों को पिलाने के क्रम से वैसे दूध को पी हुई गायों के अन्तिम की एक नाथ का जो दूध हो उस दूध की बनाई हुई खीर जिसमें अनेक प्रकार के मेंवे आदि संस्कारक द्रव्य डाले गये हों वह कल्याण प्रवर भोजन चक्रवर्ती का कहलाता है वह वर्ण शुक्रवर्ण से गन्ध से सुरभिगन्ध से रस से मधुरादि रस से, स्पर्श से मृदुरिन पवर भोयणे सत्तहस्स निकन्ने वण्णेण उजवे गंधेणं उबवेए रसेणं उबवेए फासेणं उरवेए' प्रेम यातुरंत यवर्ति रामनुं लेकिन है ? उदयालु लेोभनना નામથી પ્રસિદ્ધ છે. ચક્રવર્તિ રાજાનુ તે કલ્યાણ ાજન આ રીતે બને છે. ચક્રવત્તિ નીજ ગાય હાય, અને તે પુરીૢ જાતીની ઉત્તમ શેલડીને ચરવાવાળી હાય, શરીરથી નિરાગી હાય, એવી એક લાખ ગાયાનુ દૂધ પચાસ હજાર ગાયાને પીવરાવવામાં આવે, પચાસ હજાર ગાયાનું દૂધ પચીસ હજાર ગાયાને પીવરાવવામાં આવે, આ રીતે અધિ અધિગાયાને ક્રમથી દૂધ પીવરાવતાં પીવરાવતાં એવી રીતે દૂધને પીનારી છેવટની એક ગાયનું જે દૂધ ઢાય છે એ દૂધથી બનાવેલ દૂધપાઠ કે જેમાં અનેક પ્રકારના મેવા વિગેરે સ્કાર વાળા પઢાર્યાં નાખવામાં આવ્યા હોય તે ચ¥વતિ રાજાનુ
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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