SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू.५ रत्नप्रभापृथिव्याः क्षेत्रच्छेदः चतुरस्राणि आयतानि, एतावत्संस्थानपरिगतानि-कथंभूतानि एतानि सर्वाणि तत्राह-'अन्नमन्न' इत्यादि, अन्नमान बद्धाइ' अन्योऽन्यं संबद्धानि 'अण्णमण्ण पुट्ठाई' अन्योऽन्यं स्पृष्टानि, अन्योन्यं परस्परं स्पृष्टानि-स्पर्शयुक्तानि, तथा'अण्णमण्ण ओगाढाई' अन्योन्यावगाढानि अन्योऽन्यं परस्परमवगाढानि, यत्रैक द्रव्यमवगाढं तत्र अन्यदपि द्रव्यं देशतः क्वचित् सर्वतोऽवगाढ मित्यर्थ: ? 'अण्णमण्णसिणेहपडिवदाई' अन्योऽयं स्नेहप्रतिवद्धानि अन्योन्यं परस्परं स्नेहेन चिकगत्वेन प्रतिबद्धानि-मिलित्तानि येनैकस्मिन् चाल्यमाने गृह्यमाणे वाऽपरमपि चलनादि क्रियोपेतं भवति । तथा-'अण्णमण्ण घडताए चिटुंति' अन्योन्य घटतया तिष्ठन्ति, अन्योन्यं परस्परं घटनवे संबध्नन्ति द्रव्याणि यत्र तत् अन्योन्य'संठाण- परिमंडल- वह-तो-चउरंस- आयय-संठाण परिणयाई' संस्थान की अपेक्षा क्या वे परिमंडल संस्थान बाले, वृत्त संस्थान वाले, व्यस्त्र संस्थान वाले, चतुरस्त्र संस्थान वाले और आयत्त संस्थान वाले होते हैं ? 'अन्न मन्न बदाइ" ये रूप द्रव्य आपका आपस में एक दूसरे से सम्बद्ध हैं क्योंकि ये सब द्रब्ध एक ही स्थान पर रहते हैं 'अन्न मन्न पुट्ठाई तथा आपस में ये एक दूसरे के साथ स्पृष्ट है 'अण्ण मण्ण ओगाढाई' जहां एक द्रब्ध अवगाढ है वहीं पर दूसरा द्रव्य कहीं एक देश से और कहीं सर्वदेश ले भनगाह होता है 'अण्ण मण्णसिणेह पडिबधाई' ये आपस में स्नेह गुण को लेकर प्रतिबद्ध रहते हैं। मिले हुए रहते हैं इसी कारण एक के चलायमान होने पर अथवा गृहीत होने पर दूसरा द्रव्य भी चलनादि क्रियोपेत होता है 'अण्ण मण्णघडत्ताए चिट्ठति से वष द्रव्य एक दूसरे में लमुदाय रूप से डाय छ ? 'संठाणओ परिमंडलवद्वत सचउरंस्त्र आयय संठाण परिणयाई સંસ્થાનની અપેક્ષાથી શું તે પરિમંડલ સંસ્થાનવાળું, વૃત્તસંસ્થાનવાળું, વ્યસ્ત્ર ત્રણ સંસ્થા નવાળું, ચતુરસ્ત્ર સંસ્થાનવાળું, અને આયત સંસ્થાનવાળું હોય છે? 'अन्नमन्न पुटाइ तथा ५२२५२मा मे मे भीतनी साथे २५०८ भगेस छे. 'अज्गमण्ण ओगाढाइ' भयो । २०५ Aq थयेर छे, त्यां भी द्रव्य ५ यis ये देशथी भने या सशथी अपमा थने २९ छ, 'अण्ण मणा सिणेह पडिवद्धाई' से ५२२५२मा स्नेह गुण पशात् धाये २७ छ, અર્થાત્ મળેલ થઈને રહે છે. એ જ કારણથી એકના ચલાયમાન થવાથી અથવા अस वाथी भानु, द्रव्य ५ यसन वि३ छिया पाणु थाय छे. 'अण्ण मण्णधडत्ताए चिढवि' मा या द्रव्या गे: olneी साथे समुदाय पाया
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy