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________________ प्रमैयद्योतिकाटीका प्र.३ उ.३ १.३३ सभेद मनुष्यस्वरूपनिरूपणम् ४२३ ___सम्प्रते-गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यप्रतिपादनार्थमाह-'से कि तं' इत्यादि, 'से किं तं गमवक्कंतिय मणुस्सा' अथ के ते गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याः गर्भव्यु स्क्रान्तिकमनुष्याणां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, भगवानाह-गम्भवतिय' इत्यादि, 'गमवक्कंतियमणुस्सा तिविहा पन्नत्ता' गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्या स्त्रिविधा त्रिपकारकाः प्रज्ञप्ता:-कथिताः, तत्र विध्यं दर्शयति-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'कम्मभूमिगा अम्मभूमिगा अंतरदीवगा' कर्मभूमिकाः कर्मभूमिपु मरतैरवतादि पञ्चदशसु कर्मभूमिषु जायमानाः कर्मभूमिकाः, एवमकर्म (मिधुहैमवतादि त्रिंशद्विधासु भोगभूमिषु जाता अकर्मभूमिकाः, अन्तरद्वीपकाः लवणसमुद्रमध्येऽन्तरेऽन्तरे द्वीषा इति अन्तरद्वीमा, अन्तरद्वीपेषु षट्पञ्चाशत्संख्यकेषु अमज्ञी मिथ्यादृष्टि अज्ञानी और सभी पांचों पर्याप्तियों से अपयाप्त होते हैं वे अन्तर्मुहूर्त की आयु में ही फाल कर जाते हैं। 'सेत्तं समुच्छिम मणुस्सा' से समूर्छिम मनुष्य है। गर्भज मनुष्यों का विवेचन-से कि तं गम्भवतिय = णुस्सा' हे भदन्त ! गर्भज मनुष्यों के कितने भेद हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैंहे गौतम ! 'गम्भवपकमियमणुस्ला तिविशा पणत्ता' गभव्युत्क्रान्तिकगर्भजमनुष्यों के लीन भेद हैं । 'तं जहा' वे भेद इस प्रकार हैं-'क.म्म. भूमिगा, अकम्मभूमिमा, अंतरदीममा कर्मभूमिक, अकर्मभूमि और अन्तरद्वीपक इनमें जो कर्म भूमियों में-भरत ऐरबत्तादि पन्द्रह क्षेत्रों मेंउत्पन्न होते हैं के कर्मभूमिकामवन आदि तील अकर्मभूमियों में जो उत्पन्न होते हैं-वे अकर्मभूमि कहलाते हैं। दो लाख घोजन के विस्तारव ला लवण समुद्र के भीतर भीतर जो द्वीप है, वे अन्तर बीप हैंइन छपरन अन्तरद्वीपों में जो उत्पन्न होते हैं वे अन्तर द्वीपक मनुष्य हैं। અને બધી પાંચે પર્યાપ્તિથી અપર્યાપ્ત હોય છે આ અંતમુહૂર્તના આયુષ્યમાંજ ४.१ ४२ छ. 'से तसंमुच्छिममणुस्मा' मा स भूमि भनुप्यातुं नि३५९ ४थु छे. वे म भनुध्यान ३५ ४.पामा मावे छे 'से कि त गम्भ वक तिय मणुस्सा' मावन् गम भनुष्याना टसा लेड ह्या छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमी गीतम! 'गम्भवक्क तिय मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता' गम युति - भनु याना न हो Bal छ, 'त जहा' त हो । प्रभारी छ 'कम्मभूमिगा, अकम्मभूमिगा, अतरदीवगा' કર્મભૂમિક અકર્મભૂમિક, અને અંતરીપજ, આમાં જે કર્મભૂમિમાં એટલે કે ભરત, એરવત, વિગેરે પંદર ક્ષેત્રમાં ઉત્પન્ન થાય છે. તેઓ કર્મભૂમિક કહેવાય છે બે લાખ યોજનાના વિસ્તારવ ળા લવણ સમુદ્રની અંદર અંદર જે દ્વીપ છે, તે અંતરદ્વીપ છે. આ છપન અંતરદ્વીપમાં જેઓ ઉત્પન્ન થાય છે. તેઓ અંતરદ્વીપક મનુષ્ય છે,
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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