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________________ shrutfतका टीका प्र.३ उ.३.२८ स्वस्तिकादि विमाननिरूपणम् ४४१. सन्ति विजयादीनि विमानानीति । 'ते णं संते ! विमाणा के महालया पन्नत्ता'यानि खलु भदन्त । विमानानि - विजयादिनासकानि कियन्महान्ति भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह - 'जोयमा' इत्यादि, 'गोरमा' हे गौतम ! जाइए सूरिए उदेह' यावर क्षेत्रे सूर्य उदेति इत्यादि सूक्तं यावत्परिमतं क्षेत्र' भवेत् 'एवइयाण' नव ओवासंतराई' एतावन्ति एवात्पमाणानि अत्र नत्र अवकाशान्तराणि सन्ति 'सेयं तं चेव' शेषं तदेव पूर्वोक्तमेव, तवत्के क्षेत्रे कथन्देवः देवगत्या उत्कृष्टादिदिव्यदेवगत्या व्यतिव्रजेत् 'नो चेत्र णं ते विमाणे बीइनएज्जा' नैव खलु स देवः तानि विजयादीनि विमानानि व्यवित्रजेन्, पूर्वोक्तविशेषणविशिशेऽपि देव उत्तर में प्रभुश्री कहते है 'हंना अस्थि' हां गौतम ! विजय आदिक विमान हैं । 'ते णं भंते ! विमाणा के महालया पत्रत्ता' हे भदन्त ! ये विजयवैजयंतादिक विमान कितने बडे अर्थात् विशाल कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोमा ! जावइए सूरिए उदेह' हे गौसम ! जितने प्रमाण क्षेत्र में सूर्य का उदय होता है और जितने प्रमाण क्षेत्र में वह अस्त होता है 'एवइयाई नव ओयामंनश" इतने प्रमाण के यहां नौ अवकाशान्तर होने से उतने प्रमाण क्षेत्र को नौ गुणा करना चाहिये, इतने प्रमाण वाले क्षेत्र में घूमने की शक्ति वाला कोई एक देव अपनी उस उत्कृष्ट आदि विशेषणों बाजी दिव्य देव गति से कम से कम एक दिन अथवा दो दिन अधिक से अधिक छह मास तक चलता रहे तब भी वह देव 'नो चेत्र णं ते विमाणे बोईवएज्ज।' इन विजयादि विमानों में से एक भी विमान को लांच नहीं सकता है। यहां तात्पर्य यह है कि पूर्वोक्क प्रश्नना उत्तरमा अलुश्री गौतमस्वामीने हे छे 'हता अस्थि, गौतम ! विनय वैन्यंत विशेर विभाने छे. 'वे णं भंते विमाणा के महालया पन्नत्ता' हे ભગવત્ આ વિજય વિગેરે વિમાના કેટલી વિશાળતાં વાળા કહેવામાં ાવેલ છે? या प्रश्नता उत्तरमां प्रलुश्री गौतमस्वामीने हे 'गोयमा । जावतिए सूरिए રેફ' હૈ ગૌતમ ! જેટલા પ્રમાણ ક્ષેત્રમાં સૂર્યના ઉદય થાય છે, અને नेटसा प्रभाष क्षेत्रमां ते भरत थाय छे, 'एवइयाइं नव ओवास तराइ " એટલા પ્રમાણના અહિયાં નવ અવકાશાન્તર હાવાથી એટલા પ્રમાણ ક્ષેત્રને નવગણુ કરવું જોઈએ. આટલા પ્રમાણવાળા ક્ષેત્રમાં ફરવાની શક્તિ વાળા કાઈ એક દેવ પેાતાની એ ઉત્કૃષ્ટ વિગેરે વિશેષણા વાળી દિવ્યદેવગતિથી એાછામા આછે એક દિવસ અથવા બે દિવસ અને વધારેમાં વધારે છ માસ સુધી तर तो ते द्वे 'नो चेत्र णं वे विमाणे वीईवपज्जा' या विषय વિગેરે વિમાના પૈકી એક પણ વિમાનને ઉલ્લ’ઘી શકતાનથી, આ કથનનું जी० ५६
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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