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________________ प्रमेयधोतिका का प्र.३ उ.३ १.२८ स्वस्तिकादि विमाननिरूपणम् ४३३ शिष्टानि 'सोत्थुत्तरवर्डिसगाई' स्वस्तिकावतंसकानि एतनामकानि विमानानि-- सन्ति किमिति भगवतो गौतमस्य विमानविषये प्रश्न:, भावानाह-'हंता' इत्यादि, 'हंता अस्थि' हे गौतम ! इन्त.सन्ति यानि विमानानि त्वया पृष्टानि एकादशनामकानि तानि तथाविधान्येव सतीति । पुनगौ तसा प्रश्न यन्नाह-'तेणं भंते' इत्यादि, 'ते णं भंते ! बिमाणा के महालया पनत्ता तानि उपयुक्त नाम: कानि विमानानि कियन्महान्ति-कियत्प्रमाणमहत्वानि तानि दिमावानि सन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जावइएणं मुरिए उदेइ जावइएणं सरिए अस्थमेइ एनइया विष्णोवासंतराई पावति क्षेत्रे खलु सूर्य उदेति सावति क्षेत्रे खलु सूर्योऽस्तमेति एनान्ति उदयक्षेत्रास्तक्षेत्रपितानि प्रत्येकं त्रीणि अवकाशान्तराणि सनि जम्बूद्वीपे रमनस्कृिष्टे दिवसे मीभयन्तरे 'सोस्थियसिद्वाई' स्वस्तिकशिष्ट और 'लोत्थुष्टचाळिसगाई' स्वस्तिमा तरावतंसक इस नामों वाले विधान है क्या? या इसके उतनुश्री गौतम से कहते हैं-'हंता, अस्थि हां, गौतम इन नामों वाले देवों के विमान हैं 'ते णं भंते! विखाणा के महालया पत्नत्ता' हे बदन्त ! ये विमान कितने घडे हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोगमा ! जावइएणं हरिए उदेह जावइएणं सूरिए अत्धमह एवइया लिण्णोवासंताराई' हे गौलन्द ! शाही स्कृष्ट दिन में जितने क्षेत्र में सूर्य उदित होता है और जिलने क्षेत्र में वहअस्त होता है इतने उदय क्षेत्र और अस्त क्षेत्र प्रत्येक क्षेत्र को यहां तीन अवकाशान्तर होने से तिगुना करने पर जितना प्रमाण उस क्षेत्र का आना है.'अत्थेगझ्यस्स देवस्स एगे विक्कमेलिया' उतना किसी देव का एक विक्रम एक बार में धूमने का मार्ग होता है जैसे-जम्बूद्वीप में परित 'सोत्थिय सिदाइ' स्वस्ति शिष्ट भने 'सोत्थुत्तरवळिसगाई स्वस्तिકેત્તરાવસક આ નામેવાળા વિમાને છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ पामीन अछे 'हता अत्थि' है। गौतम ! मे प्रमाणेना नामावाणा । देवानां . विभाना छ. 'ते ण भंते ! विमाणा के महालया पन्नत्ता' भगवन् ! 21 विमाना ४८सा मोटा छ १ मा प्रश्नन। त्तरमा प्रभुश्री ४७ छ । गोयमा ! जावइएणं सूरिए उदेह जावइएणं सुरिए अस्थमइ एवइया तिण्णावास तराई' गौतम सहिष्ट लिनमा સૌથી મોટા દિવસમાં જેટલાક્ષેત્રમાં સૂર્ય ઉગે છે, અને જેટલા ક્ષેત્રમાં સૂર્ય અરત થાય છે, એટલા ઉદયક્ષેત્ર અને અસ્તક્ષેત્રમાં દરેક ક્ષેત્રને અહિયાં ત્રણ અવકાશાનતો હોવાથી ત્રણગણું કરવાથી તે ક્ષેત્રનું જેટલું પ્રમાણ આવે છે, 'अत्थेगइयस्स देवस्स एगे विक्कमे सिया' । हेवनु सतुं विभ-५॥ એકવારમાં ઘૂમવાનો માર્ગ થાય છે. જેમ જ બુદ્વીપમાં સૌથી ઉત્તમ દિવસ मी० ५५
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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