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________________ % 3DD अमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ स.२५ तिर्यग्योनिस्वरूपनिरूपणम् ३९१ द्विविधाः-द्विप्रकारका एज्ञप्ला:-कथिता इति । 'तं जहा' तयथा-'पज्जत्तगठमवतिय जलयरपंचिहियतिरिकखजोगिया पर्याप्त कगर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरपञ्चे न्द्रिपतियग्यो निकाः 'एज्जत्ता गम्भववलिय जलयरपंचिदितिरिक्खजोणिया' अपर्यापकगर्भव्युत्क्रान्तिकजल घरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योकाः, तथा च पर्याप्तकापर्या प्तकभेदेन गर्भजजलचरा द्विविधा मन्तीति। 'से त गमकलिय जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिसा' ते एते गभन्युन्क्रान्तिकाजलचरपश्चन्द्रियनियंग्योनिका निरूपिता से जलापंचिनियतिरिवखन जिसे एसे जलचरपञ्चन्द्रिय तिर्यम्पोनिका जीवा मेदाभेदाभ्यां निरूपिता इति । जलवरान्निरूप्य स्थलचरान् निरूपयितु पश्नयबाह-से कि तं थलयर' इत्यादि, ‘से किं तं थलयर चिदियनिरिक्खजोणिया' अथ के ते स्थल चरपञ्चे न्द्रियतिर्यगोनिकाः १ स्थलचरर चेन्द्रियतिरश्चां कियन्तो भेदा इति प्रश्ना, उत्तरपति-'थलयरपंचिंदियतिरिक्वजोणिया' दिहा एकत्ता' स्थलचरपञ्चेन्द्रिर'पज्जत्तगभश्वकं लिय जलघर निरिक्ख जोणिया पर्याप्तक गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक्ष और 'अपज्जत्तम गम्भवतिय तिरिक्खजोणिया' अपर्याप्तक गर्भज जलचर पश्चन्द्रिम तिर्यग्योनिक 'सेत्तं गब्सनक्कलि जलयर पंचिं' इल कार से गर्भज जलचर पचेन्द्रिय तियग्योनिक जीव दो प्रकार के कहे हैं। ____ अब सूबझार स्थलचर पञ्चन्द्रिय तिर्थ योनि जीवों का वर्णन करते हैं-'से कि तं थलचर पंचिदिय तिरिक्ख जोणिया' हे बदन्त ! स्थलचर पञ्चेन्द्रिय लिई योनिक जीत लिने प्रकार के है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'थलयर पंथिलि सिचिवमोणिया सुविधा पानता' हे गीतम! स्थलचर पञ्चन्द्रिय लियोनिका जीव दो प्रकार के है-'तं जहा' जैसेमे प्रा२न डाय छे. 'त' जहा' मे ५४.२ । प्रभाव छ. 'पज्जत्तगगम्भवतिय जलयर पचिदियतिरिकखजोणिया पर्यात or oraय२ ५'यन्द्रियतिय यानि भने 'अपज्जत्तग गभवतिय तिरिक्ख जोणिया' मर्यात ४ सय२५ ये न्द्रिय तिय योनि से तं गमबक्क तिय जलयापचि दियतिरिक्खजोणिया' मा પ્રમાણે આ ગર્ભજ જલચર પંચેન્દ્રિય તિનિક છે બે પ્રકારના કહ્યા છે. હવે સૂત્રકાર સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યનિક જીવેનું વર્ણન કરે છે. तमा गीतमस्वामी ने पूछे छ, 'से कि तं थलयरपंचि दिय तिरि ख. जोणिया' हे भगवन् स्थाय२ चन्द्रिय तिययानि 21 प्रारना ४ा छ १ मा प्रशन इत्तरमा सुश्री गीतमस्वामीन है 'थलयर पचि दिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता' है गौतम ! स्थलय२ ५'यन्द्रिय
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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