SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० जीवाभिगमसूत्रे इति प्रश्नः, उत्तरयति - 'संमुच्छिमजल पर पंचिदिय निरिकखजोगिया दुविधा पन ता' संमूच्छिम जलचरपञ्चेन्द्रि” तिर्यग्योनिकाः द्विविधाः द्विमकारकाः प्रज्ञाःकथिताः 'त जहा ' तद्यथा-'पज्जत्तगसंमुच्छम जलपरपंचिदियतिरिकखजोणिया ' पर्यातकसंमूच्छिम जलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकाः 'अपज्जत संमुच्छिम जलयरपंचिदियतिरिवखजोगिया य' असं डिजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाइच, तथाच पर्याप्तकापर्याप्तकभेदेन संसूच्छिमजलचराः द्विमकारका भवन्तीति भावः । ' से तं संमुच्छिमजकयरपंचिंदियतिरिक्खजोयणिचा' ते एते पर्या तापादिभेदशिशः द्विमकारकाः संमृछिमनलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिका निरूपिता इवि । ' से किं तं गमक्कविणलयरपंचिदिपतिविखजोणिय।' अथ के ते गर्भव्युत्क्रान्तिकमलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः, गर्भजजळचराणां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, उत्तरयति - 'द तिय जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिया दुदिवा पणता' गर्भव्युत्क्रान्तिफजलचर पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः जलचर पञ्चद्रिय तिर्यग्योनिक जीव कितने प्रकार के होते हैं ? 'समुच्छिम जलपर पंचिदि०' हे गौतम संमूर्किजलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव दो प्रकार के होते हैं- जैसे- 'पज्जन्तग समुच्छिम जलपर पंचेन्द्रिय०' पर्याप्त मच्छिन जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव और 'अपज्जन्तन संमुच्छिम जलयर' अपर्याप्तक समूच्छिम जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव 'से कितं भववकंतिय जलय (०' हे भदन्त | गर्भज जलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव किनने प्रकार के होते है ? 'गन्भवतिय जलयर पंचिदिय०' हे गौतम ! नर्भज जलघर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव दो प्रकार के होते हैं- 'तं जहा' जैसे - સ'મૂચ્છિમ જલચર : ૫'ચેન્દ્રિય તિગ્યેાનિક જીવ કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે ? उत्तरमां प्रलुश्री मुडे छे है 'समुहिम जलयर पंचि दिय०' हे गौतम! सभूमि नायर ययेन्द्रिय तिर्यग्योनि मे अारना उद्या है. भडे 'पज्जत्तग संमुच्छिम जलचरपश्चिदिय तिरिक्खजोणिया' पर्याप्त सभूमि सर यथेन्द्रिय तिर्यग्योनि छ भने 'अगज्जत्तगस मुच्छिजलयरप चिदिय तिरि फूख जोजिया' मयर्यास संभूरिम सर ૫ ચેન્દ્રિય તિય ગ્ગેનિક જીવ 'से कि ं तं गव्भवतियजलयर पचिदिय तिरिकख जोणिया' हे लगवन् ગજ જલચર પચેન્દ્રિય તિય ચૈાનિક જીવા કેટલા પ્રકારના હાય છે? उत्तरमा प्रभुश्री छे 'गभक्क' तिय जलयरपंचिदिय तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता' हे गौतम! गर्ल ४सयर यथेन्द्रिय तिर्यग्योनि लुवे
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy