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________________ rammar - जीयामिगम २८२ अथवा शत पइक्षु स्तथा चेक्षु कृषय इत्र 'चालेमाणा चालेमाणा अंतो अंगो' अन्तरन्तः शरीरस्य मध्यभागेन संचरन्त संचरन्त एकम्य शरीरदेशेऽनुमविशन्तस्ते नारकाः 'वेयणं उदीरयंति उज्जलं जाव दुरहियासं' वेदना मुदीरयन्ति उज्वला यावत्-विपुलां प्रगाढा कर्कशक्टका एसपी नडा निष्टुगं तीनां दुर्गा दरधिसपामिति, एतादृशी वेदनामुदीरयनि-शटयति पष्ठ सप्तम पृथिवी नारका इति । सम्पति-क्षेत्रस्य भावनां वेदना गनिगादयनि-'इश्रीसे णं इत्यादि, 'इमी से णं भंते ।' रयणप्पभाए पुढबीए' एका वा भदन्त ! नपमायां पृथिव्याम् 'नेरइया' नरयिकाः 'फि. सीयं देणं ' किंमत वेदना चेदयन्ति अथवा 'उसिण वेरणं वेदेति' उष्ण वेदना वेदयति गया-'सीय उमिन वेयणं वेदेति' शीतोष्णवेदना वेदयन्तीति ना भग ६-'गोशमा' इत्यादि, 'गोयमा गौतम ! 'णो सीयं वेरणं वेदेति' नो शीरा वेदनां वेदयन्ति, किन्तु 'उसिनं पर्ववाली इक्षु के किडेकी तरह चाटेमणा २' भीतर को भीतर मन. सनाहट करते हुए घुस जाते हैं इससे वे 'वेयणं उदीरयंति' उज्वल आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाली वेदना को उसे उत्पन्न करते हैं यही बात 'उज्जलं जाव दूरहियासं' हर मृत्रण द्वारा प्रकट की गई है। अय सूत्रकार क्षेत्र स्वभावज वेदना का कथन करते हैं। 'इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुत्रीए नेरझ्या' हे भदन्त । इम रत्नप्रभा पृथिवी के नैरयिक शि सीवेयणं वेदें नि उसिणवेयणं वेदेति' क्या शीतवेदना को भोगते है ? या उपनवेदना को भोगते हैं। या 'सीय उसिणवेयणं वेदेति' शीतोष्ण वेदना को भोगते हैं। इस प्रकार के गौतम के प्रश्न का उत्तर देते नए भगवान कहते हैं 'गोयमा! जो सीयं वेयणं वेदेति' हे गीतम! देना जीव शीनवेदना का वेदन छ. तथा तमा 'वेयण उदीरयति' Sarge (वगैरे पास विशेषणवाणी वेहना ने 6त्पन्न ४शवे छे. ४ वात 'उज्जलं जाव दुरहियास' मा सूत्र દ્વિારા પ્રગટ કરવામાં આવી છે. वे सूत्रा२ क्षेत्र २१॥4जी वहनाना सधमा थन ४२ ७. 'इमोसे णं भते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया' है सावन मा २नमा पृथ्वीना राय। 'किं सीयवेयणं वेदेति उसिणवेयण वेदेति" शुशीत वहनातुं वहन ४२ छ, ना सोश १ मा 'सीय उसिणवेयणं वेदेति' शीत वनाने लागव छ । गौतमस्वामीना मा प्रश्न उत्तर मापता प्रभु ४ छ । 'गोयमा ! पो सीयं वेयणं वेदेति' के गीतम! ना२३ शात वहनानु' वहन ४२ता नयी:
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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