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पीयूपपिणी-टीका र ४ घृक्षवर्णनम् ..--मूलम्-ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमतो
टीका:-'तेण पायवा' इयादि। 'त' तसम्बन्धिन -तच्छन्दस्य लक्षणया तसम्बन्धिन इत्यर्थ , तच्छन्देन बुद्धिस्थविपयपरामात् वनसण्डस्य परामर्श । वनखण्डसम्बन्धिन इत्यर्थ , पादपा वृक्षा , कीदृशास्ते वृक्षाः' इत्यत्राऽऽह'मूलमतो' मूल्यन्त -मूलानि सन्ति पाम् इति मूल्यन्त मूल्सम्बद्धा वृक्षा इत्यर्थ । 'कदमतो' कन्दवन्त -मूलानामुपरि प्रन्थिरूपा कन्दा , ते सन्ति येपा ते तथा । 'खधमतो' स्कन्धवन्त -शाखाविभागस्थान स्कन्ध , ते स्कन्धा सन्न्येपा ते स्कन्धवन्त । 'तयामतो' त्वग्यन्त -स्वचो-चकलानि सन्त्येपामिति ते तथा । 'सालमतो' शालावन्त -शाला शाखा सन्येषामिति । 'पवालमतो' प्रवालवन्त -प्रवालायालस्पर्श गीत इसलिये या कि यहा लताओं का कुज अधिक था। मासन के समान यह स्पर्श में चिकन था। प्रभा के प्रकर्ष से इसकी प्रभा भी तीन थी। कृष्ण एव कृष्णावभास इन दो विशेषणों से सूत्रकार का यह अभिप्राय है कि यहा पर जो कृष्णता थी वह गाढ थी। ॥ सू० ३॥
'ते ण पायवा०' इत्यादि--
(ते ण पायवा मूलमतो) उस वनखड के ये वृक्ष जमीन के भीतर गहरी फैली हुई बडी २ जडों वाले थे। (कदमतो खधमतो तयामतो सालमतो पपालमतो पत्तमतो पुप्फमतो फलमंतो वीयमतो) कद-मूलों के ऊपर गाठ-वाले थे । स्कव-गाखाओं के रहने के स्थानवाले थे। त्वचा-छाल युक्त थे। शालाओ--गासाओं से विशिष्ट थे । प्रवाल-कॉपल सहित थे। पत्रों से भरे हुए थे, पुष्पों से युक्त थे । હતું કે અહી લતાઓના કુ જ વધારે હતા માખણના જે તેને સ્પર્શ ચિકણે હતે ઉજાસ વધારે હોવાથી તેને ઉજાસ પણ તીવ્ર હરે કૃષ્ણ તેમજ કૃષ્ણવભાસ એ બે વિશેષણોથી સૂત્રકારને એ અભિપ્રાય છે કે અહીં જે કાળાશ હતી તે ઘેરી હતી (સૂ ૩) 1 'ते ण पायवा' त्यादि !! (ते ण पायवा मूलमतों) मे नम उमा ! वृक्ष भीननी २०४२ 6. ३साए गयेसा मोटा मोटा भूगपाता (कदमतो सधमतो तयामतो सालमतो पवालमतो पत्तमतो पुप्फमतो फलमंतो बीयमतो) ४६-भू ५२ 18-4 oal, ક ધ-શાખાઓને રહેવાના સ્થાનરૂપ હતા ત્વચા-છાલયુક્ત હતી, શાલાઓશાખાએથી વિશિષ્ટ હતા, પ્રવાલ-કુપળવાળા હતા, પત્ર-પાદડાથી ભરેલા