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औषपातिकमत्रे
गंधगंधिए गंधवटिभूएणड-गट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्टिय-वेलंचग-पगकहग-लासग-आइक्खग-लंख-मंख-तणडल-तुंवचीणिय-भुयगमागह-परिगए बहुजणजाणवयस्स विस्सुयकित्तिए बहुजणस्स गधिए' सुगन्धवरग-वगधितम्-नानाविधपुष्पसम्पादितगन्धद्रव्यै मुवासितम् । 'गवटिभूए' गन्धपतिभूत-गन्धद्रव्यगुटिकासदृशम्-सौरभ्यातिशयात् गन्धद्रव्यनिर्मितवद् भासमानम् । 'पटगट्टगे'-त्यादि, अत्रैव प्रथमसूने व्याख्यातम्, नवरम्--' भुयगमागहपरिगए' भोजकमागधपरिगतम् , भोजका -सेवकाः मागधा स्तुतिपाठका , तै परिगत व्याप्तम्। 'पहुनगजाणत्रयस्स विस्सुयकित्तिए' बहुजनजानपदस्य सुगधि से सुशोभित बना रहता था। (सुगंधपरगधिए) अनक प्रकार के सुगधित पुष्पों को गध से भी वह सदा सुवासित होता रहता था (गवटिभूए) इसलिये यह गधी बत्ती जैसा हो रहा था। ऐसा ज्ञात होता था कि यह सुगधित द्रव्यों के चूर्ण से ही मानो पिरचित किया गया है। (गड-गट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलवय-इत्यादि ) नृत्य करने वालों से, नाटक करने वालों से, डोरी पर नाचने वालों से, मुष्टियुद्ध करने वालों से, बदर की तरह कूदने वालों से, भाड के जैसी नकल करने वालों से, तथा कहानी कहने वालों से, राम रचने वाला से, शुभाशुभ प्रकट करने वालों से, वासके अपभाग पर खेलने वालों से, चित्रपट दिसला कर आजीविका कग्न वालों से, चोगा वजारे वालों से, तुवी बजाने वालों से, भोजकों-सेवकों-से, और मागधों-स्तुतिपाठकोसे वह मदिर सदा युक्त बना रहता था । (बहुजणजाण
तु (सुगधवरगधिए) मने प्रा॥ सुधित पानी थी पतमेश सुवासित तु तु (गधनट्टिभूष) मेथी ते गधना वाती થઈ રહ્યું હતું એમજ લાગતુ હતુ કે એ સુગધિત દ્રવ્યેના ચૂર્ણથી જ જાણે मना युछ (गड-जग-जल-मल्ल-मुष्ट्रिय-वेलअय-इत्यादि ) नृत्य नारामाथी, નાટયકારેથી, દોરા ઉપર નાચવાવાળાએથી, મુખિયુદ્ધ કરનારાઓથી, વાદરાની પેઠે કૂદવાવાળાઓથી, ભાડ (ભવાયા) જેવી નકલ કરવાવાળાએથી, તથા વાર્તા કહેવાવાળાઓથી, રામ કરનારાઓથી, શુભાશુભ પ્રકટ કરનારાઓથી, વાગની ટોચ પર રમનાગઓથી, ચિત્રપટ દેખાડીને આજીવિકા કથ્થાવાળાઓથી, વીણા વગાડનારાઓથી, તુ બુર વગાડનારાઓથી, ભેજવાથી અને भाजपा-तुतिमाथी ते भ६२ मा १२५४ २हेतु तु ( बहुजणजाण