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স্পীথঙ্কিমু कप्पं जबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छराणिवापहि तिसत्तखुत्तो अणुपरियहित्ता णं हव्यमागच्छेजा ॥ सू०७५ ॥
मूलम्-से पूर्ण भंते से केवलकप्पे जंबुद्दीवे टीवे तेहिं घाणपोग्गलेहि फुडे ? हंता! फुडे ॥ सू० ७६ ॥ लिकम्-सत्वरमित्यर्थ , इति कृया, 'केवलकप्प' केरलकप-सपूर्ण, 'जबुद्दी। जम्बूद्वीप 'दी' द्वाप तिहि त्रिभि 'अन्राणिवाएहि अच्छगशदो देशीय लोटिकाचक, छोटिकाभिरित्यर्थ , तिसत्तखुत्तो' त्रिसप्तरत्व एकविंशतिवारान् 'अणुपरियहित्ताण अनुपर्यव्यपरिभ्रम्य खल 'इन्चमागउजा' गीतमागच्छेत् । छोटिकात्रयकालसमकाले एव सपूर्ण जम्बूद्वीपमेकविंशतिगारान् परिभ्रम्य शारमागच्छदित्यर्थ ।। सू०७५ ॥
टीका-गौतम पृच्छति-से गुण भते !' इत्यादि । ' से घृण भंते " अथ नून हे भदन्त ! ' से केवलकप्पे नबुद्दीवे दीवे ' स केवलकपे जम्बूद्वीप द्वीपे 'तेहिं ते, 'घाणपोग्गलेहिं ' प्राणपुद्गलै गन्धपुद्गलै पुढे ' स्पृष्ट किम् , ' मगवानाह-'हता फुडे' हन्त ! स्पृष्ट ।। सू ७३ ॥ उस समस्त जबूद्वीप की (तिहिं अच्छराणिवाएहिं) तीन चुटकी बजाने में जितना समय लगे उतने समय में (तिसत्तखुत्तो) तीनगुणित सात-इक्कीस बार (अणुपरियट्टित्ता) प्रदक्षिणा देकर (हन्धमागच्छेज्जा) वहीं पर शीघ्र आजावे ।। सु ७५ ॥
‘से पूर्ण भते ।" इत्यादि।
गौतम पूछते है-(से पूर्ण भते ! से केवलकप्पे जवुद्दीवे दीवे ) हे भदन्त । वह समस्त जपूद्वीप (तेहिं घाणपोग्गलेहि फुडे ?) क्या उन समस्त सुगधित पुद्गलों से स्पृष्ट हो जाता है ? उत्तर-(हवा! फुडे) हा हो जाता है । सू ७६ ॥ पनी (तिहिं अच्छराणिवाएहिं ) २५टी भावामा र समय समे तदा समयमा (तिसत्तखुत्तो) पीसा२ (अशुपरियहिता) प्रदक्षिणा धन (हव्वमागच्छेना) त्या पाछ। सही मावी जय (सू ७५)
से गुण भते । छत्यादि
गौतम छे छे-(से गूण भते । से केवलकप्पे अबुद्दीवे दीवे). MErd! A समस्त पूदी५ (तेहिं पाणपोग्गलेहि फुडे) शुत समस्त भुपित भुभवाथी २४ ५४ लय छ ? उत्तर-(हता । फुडे) 31, यई जय छे (सू ७६)