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________________ ६७० alourfosex वट्टे रहचक्कबाल - संठाण - संठिए वट्टे पुक्खर - कण्णिया - संदाणसंठिए वहे पडिपुण्ण--चंद - संठाणमंदिए एक जोयणसयसहस्सं आयामविवश्वभेणं तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साई दोणि य सत्तावीसे जोयणसए तिणि य कोसे अट्टावीस च धणुस तेरस य अगुलाई अहंगुलियं च किचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ सू० ७४ ॥ नप्रमाण, १ सस्थान -मस्थित - चकना=मण्डल, गण्डवधर्मयोगाच रथचकमपि रथचक्रवाल, तसस्थानेन सस्थित –रथचक्राऽऽकार स्थित इत्यर्थ 'हे' वृत्त 'पुत्रखर- कण्णिया सठाण सठिए बड़े' पुष्करकर्णिका- स्थान- सम्थित पद्मनाजको सदृशाकारयुक्त, 'एक्कं जोयणसयसहस्स आयामविवभेण' एक योजनशतसहस्रम् आयामनिष्कम्भेगदैर्घ्यपरिणाहाभ्यामेकल योज'वट्टे' वृत्त 'पडिपुण्ण-चद-सठाण मटिए' प्रतिपूर्ण चन्द्र-सस्थान -सस्थित, 'तिष्णि जोयणसहसा ' त्रीणि योजनगतमहस्राणि त्राणि लक्षाणि योजनानि, 'सोलस सहस्साह' पोडा महस्राणि, 'दीणि य सतारीसे जोयणसए' दे च सप्तर्विशे योजनशते= समविंशत्यधिके द्वे शते योजनानि 'तिष्णि य कोसे' नाथ कोशान 'अट्ठावीस च धणुसय' अष्टाविं=अष्टाविंग यधिकशतधनूषि, 'दस य अगुलाइ' त्रयोदश चाहूलानि 'अगुलिय च' अद्राङ्गुलिna 'किंचि विशेषाहिए' किञ्चिद्विशेषाऽधिक ' परिक्खेवेण ' परिक्षेपण परिधिना 'पण्णत्ते प्रज्ञप्तम् || सू० ७४ कण्णिया-मठाण-मठिए ) कमलकी कर्णिका के जैसा गोल है । ( बट्टे पडिपुण्णचद-सठाण - सठिए ) पूर्णचद्रमंडल के जैसा गोल है । ( एक जोयणसयसहस्स आयामसभेण तिथि जोयणसयसहस्साइ सोलससहस्साइ दोणि य सत्तावीसे जोयणसए तिष्णिय कोसे अट्ठावीस च धणुसय तेरम य अगुलाइ अद्वगुलिय च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेण पण्णत्ते ) यह जबूद्वीप एक गाव योजनका आयाम एन वो गोण छे ( एक्क जोयण सयसहस्स आयामवित्समेण तिण्णि जोयण साइ सोल्सहस्सा दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिष्णि य कोसे अट्ठावीस च धणुमय तेरस य अगुलाइ अद्वगुलिय च किंचिनिसेसाहिए परिम्सेवेण पण्णत्ते) २४ द्वीप १ साथ योनना शायाम तेभर विष्ठ लवाणी दाणे
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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