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________________ - - औपपातिकसने मूलम्---तीसे णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए एत्थणं पुषणभद्दे णामं चेडए होत्था, चिराईए पुवपुरिसपण्णत्ते पोराणे सदिए वितिए कित्तिए णाए टीका-'तीसेण' इत्यादि । 'तीसेणचपाए णयरीए' तस्या सलु चम्पाया नगर्या -न करोऽष्टादशविधस्तन्निवासिना राज्ञे देयो यस्यामा नगरो, अब ककारम्य गकाररूपोवर्णविपर्याम पृ. पोदरादित्वात्, अष्टादशविध करोऽस्माभिरन्तकृदमागसूत्र प्रथमसूत्रस्य मुनिकुमुदचन्द्रिकाठीकायामुक्तस्ततो विज्ञेय । 'वहिया वाद्ये, 'उत्तरपुरत्यिमे उत्तरपौरस्त्ये-उत्तरस्या पूर्वस्या अन्तरालेऐशान्ये कोण इति यावत् । ' दिसीभाए ' दिग्भागे । 'पुण्णभद्दे णाम चेइए होत्या' पूर्णभद्र नाम चैत्य-व्यन्तरायतनमासीत् । तत् कीदृशम् ? इत्याह-'चिराईए । चिरादिकम् चिरकालिकम् अतएव-'पुचपुरिसपण्णत्ते' पूर्वपुरुषप्रज्ञन्तम्, पूर्वपुरुषै प्राचीनपुरुषै प्रजप्तम-कथित बहुकालत प्रसिद्धम् इत्यर्थ । यत पोराणे-पुरातनमतिप्राचीनम् 'सदिए' शन्दित-गब्द -प्रसिद्धि सञ्जातो यस्य तत्-अन्दितम्प्रसिद्धिप्राप्तम् । 'चित्तिए' वित्तिकम्-वित्त-प्रसिद्धिरस्यास्तीति वित्तिकम् प्रसिद्धमित्यर्थ । 'फित्तिए' कीर्तितम्-प्रवर्णितम् ‘णाए' प्रख्याततया ज्ञात-सकलजन तीसे ण चपाए णयरीए०' इत्यादि। (तीसे ण चपाए गयरीए) उस चपा नगरी के (बहिया) बाहिर (उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए) उत्तर और पूर्व दिशा के बीच ईशानकोणमें (पुण्णभद्दे णाम चेइए होत्था) पूर्णभद्र नाम का एक चैय-यक्षालय था। (चिराईए पुन्यपुरिसपण्णत्ते ) वह बहुत प्राचीन था । बडे-बूढे पुराने पुरुष भी इसको तारीफ करते आ रहे थे। इसलिये यह (पोराणे ) बहुत पुराना था। (सदिए ) इसी प्रकार से इसकी प्रसिद्धि भी चली आरही यो। और इसी कारण से वह (वित्तिए) बहुत पुराना है-इस रूपसे प्रसिद्रि-कोटि मे आ गया तीसे ण चंपाए णयरीए० ४त्यादि (तीसे ण चंपाए णयरीए) ते या नगीना (बहिया) महार (उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए) उत्तर भने पूर्व हिशानी ये-शानभा (पुण्णभद्दे णाम चेइए होन्था) मनामना : येत्ययालय उत। (चिराईए पुव्वपुरिसपण्णते) मे ઘણે પ્રાચીન તે ઘણુ બુદ્દા પુરાણા પુરૂષ પણ તેની પ્રશંસા કરતા આવતા ता, ते भाटे ते (पोराणे) भो। पुराणो तो (सदिए) मेवी शतनी प्रसिद्धि पक्ष साक्षी भापती ती अने से रथीत (वित्तिए)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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