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रित्ता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइटाणं दलासंति, दल इत्ता पडिविसनेहिति ॥ सू०१७ ॥ - - ।।
मूलम्--तए णं से दढपइण्णे दारए बोवत्सरिकलापडिए नवंगसुत्तपडिवोहिए अहारसदेसभासाविसारण गीयरई काऽऽहं प्रीतिदान दात्यत , 'दलइत्ता' दया 'पडिविसजेहिति । प्रतिविम जेयिष्यत ॥ सू० ४७॥
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' टीमा--'तए णं' इत्यादि । 'तए ण से दढपटपणे दारए ' 'तत 'सलु स दृढप्रतिजो दारक 'वारतरिकलापंडिए' द्वासप्ततिकलापण्डित 'नवगमृत्तपाडवोहिए' नगाङ्गसुप्तप्रतियोधित नामानि दे श्रोने, वे नेत्रे, वे घ्राणे, एका च जिहा, स्वर्गकी, मनश्चैमिति, तानि सुप्तानीव सुप्तानि-याच्यादव्यक्तचेतनानि ,तानि प्रतियोषितानि यौवनन व्यक्तचेतनावन्ति कृतानि यस्य स तथा । 'गीयरई गीतरति गानप्रियः, गधन-पट्टविपुल रूप में जीविका के योग्य प्रीतिदान देंगे, (दलइत्ता पंडिविसजेहिति) आर देकर उसे विसर्जित कर देंगे । स ४७
) 77 (1 ) 'तए से दीपडण्णे दार त्यादि ।
(तए ण) इस के बाद (से) वह (दढपडण्णे) दृढप्रतिज (दारए) कुमार (बावत्तरिकलापडिए) बहत्तर कलाओं मे पडिन (नवगसुत्तपडिबोहिए) एव सुप्त नवागों-२ कान, २ क्षेत्र, २ नासिका के छिद्र, १ "जिह्वा, १ स्पर्गन इन्द्रिय और मन के प्रतिबोध-जागृति से युक्त यौवनावस्था सपन्न होकर, (अद्वारसदेसभासाविसारए) १८ देशों की भाषा का ज्ञाता होगा, (गीयरई गधन्त्रणमुकुसले ) यह -कुमार. गीत में दलासति) विधु- ३५ विधाने 'यय प्रीतिsiन पिश (दलइत्ता पडिवि सज्जेहिंति) भने मापाने तमनु नि हेरे (सू ४७)r r
'तए णं से दढपइण्णे दारए त्या ' .} 1 " '
(तए ण) त्यारे पछी (से) 'ते' (दढपइण्णे) प्रतिज्ञ (दारए) उभार (वायचरिकलापडिए) मोजतेर ४ायामा पठित (नवगसुत्तपडिगोहिए) तेमा સપ્ત નવ અ ગ-ર કાન, ૨ નેત્ર, ૨ નાસિકાના છિદ્ર, ૨ જીભ ૧ પશન ઈદ્રિય અને મનના પ્રતિબધ–જાતિથી યુક્ત-યૌવનાવસ્થા સંપન્ન थन (अद्वारसदेसमासाविसारए) १८ थोनी सापानी stan 20 (गीयम्