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पीयूषवर्षिणी- टीका सू ४७ अम्पड परियाजकविषये भगवद्गीतमयी सवाद ६१३
मूलम् ---तए णं तस्स देढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विउलेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं व्रत्थ-गंध-मल्ला-लंकारेण य सक्कारेहिंति सम्माणेहिंति, सक्का
टीका-' तए ण' इत्यादि । ' तर १ तम्स दडपण्णम्स दारगस्स अम्मापय त कलायरियं ' तत खलु तस्य दृढप्रनिजस्य दारकस्य अम्यापितरौ त कटाचा 'लेणं असण- पाण- खाइम - साइमेण ' विपुलेनाऽनपानखावस्था धेन वत्य-गय-मल्ला-लंकारेण य सकारेहिति सम्माणेहिंति ' वागन्धमाच्यालङ्कारेण च सत्कारयिष्यत सम्मानयिष्यत - सुगमानि पदानि वाक्यानि च । ' सकारिता सम्मापित्ता' सकृत्य समान्य ' विउलं जीवियारिह पीदाण दलइस्सति' निपुल जीवि
उवदिति ) ये ७२ फलायें पुरुषकी हैं, इन कलाओं की शिक्षा कराचार्य उसे देगा, पथात् वह उसे उसके मातापिता के पास लाकर सौंप देगा || सू ४६ ॥
' 'तए णं तस्स ' इत्यादि ।
(तएण ) इसके बाद ( तस्स दढपइण्णस्स दारणस्स ) उस दृढ प्रतिज्ञकुमार के ( अम्मापियरो) मातापिता ( त कलायरिय) उस कलाचार्य का ( विउ लेणं बसण - पाण- खाइम - साइमेण वत्थ-गंध-मल्ला-लकारेण य सकारेहिंति ) विपुल, अगन, पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, गध, एव माला तथा अलकारों के प्रदान से खूब सत्कार करेंगे | ( सम्माणेहिंति ) खूब सन्मान करेंगे | ( सकारिता सम्माणित्ता ) सत्कार एव सन्मान करके पश्चात् वे उसे (विउल जीवियारिह पीइराण दलइस्सति ) -
अम्मापण उवणेहिति) मा ७२ जाओ पुरुषनी छे मे हमायोनी इसाचार्य तेने શિક્ષા આપશે. પછી તે તેને તેના માતાપિતાની પાસે લાવીને આપી દેશે (સ્૦ ૪૬)
6 तए ण तस्स इत्यादि
(तए णं) त्यार पछी (तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स ) ते हृढप्रतिज्ञ उभारना ( अम्मापियरो ) भातापिता (त कलायरिय) ते ४सायार्थना (विउलेण असण-पाणखाइम - साइमेण वत्थ- गध-मल्ला-लकारेण य सक्कारेहिति) विधुत अशन, पान, માહિમ, સ્વાદેમ, વા, ગષ તેમજ માલા તથા અલકારે આપીને ખૂબ सत्}{२ ४२शे, (सम्माणेहिति) भूभ सन्मान ४२शे (सक्कारिता सम्माणित्ता) सत्कार तेभन सन्मान हरीने ही तेथे तेने (विल जीवियारिहं पीइदाण