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| শীঘূর্থিী -হা ৪ ৫ ঘৱাৰিয়ালযিযয সমযৗনমযীঃ ২
जुद्धं ५७. वाहुजुद्धं ५८, लयाजुद्धं ५९, ईसत्थं ६०.छरुप्पवायं ६१, धणुव्वेयं ६२, हिरपणपागं ६३, सुवण्णपागं ६४, सुत्तखेडं ६५, यथा लता वृक्षमागेटन्ती आमूलमागिरो वृक्षमावेष्टयति, तथा यत्र योध प्रतियोगशरीर गाढ निपाट्य मृमो पातयति तन्नायुद्धम् ५९, 'सत्य' इपुगास्त्र-नागवाणादिदिव्यानसूचक
आवम्, 'सत्य' इति प्राकृतौन्या उपुयायम् ६०,'छप्पवाय' सुरप्रपातम्, नुर ='क्षरा' इति प्रमिद उदनगरपिशेष , तस्य प्रपात -पातनम् ६१, 'धणुव्वेय' धनुर्वेद-धनुशास्त्रम् ६२, 'हिरण्यपाग' हिरण्यपाक रजतसिद्धि ६३, 'मुवण्णपाग' सुवर्णपानः कनकसिदिम्, 'मुवण्णपाग' इपासमायागराजप्रश्नीयसूत्रोक्तयो 'मणिपागधातुपागं' इत्यनयो समावेश ६४, 'मुत्तखेड' नग्येल-मूरमीडाम् ६५, 'वट्टखेड' वृत्तलम् ६६, एतकलाद्वय लोकतो बोध्यम्। 'वखेड' या 'चम्मखेड' चर्मखेलम्-टयन्य ममनायागोक्तस्य समावेश । वृक्ष पर चढ कर नीचे से ऊपर तक वृक्ष को लपेट लेती है उसी प्रकार योधा जिस युद्ध म प्रतियोगा के शरीर को अयन्त पीडित कर जमीन पर पटक देते हैं और उसके ऊपर चढ़ बैठते हैं वह लतायुद्ध है उसकी, (६० ईसत्य) इपुशास्त्र की, 'सत्य' यहा पर प्राकृतगरी से इपुगात्र ममझना चाहिये । नागनाण आदि दिव्य अस्त्र आदि का सूचक जो भास्त्र हे उसका नाम दपुशास्त्र है उस की, (६१ छुरप्पवाय) छुरा से युद्ध करने की, (६२ घणुव्बेय) धनुर्वेद की, (६३ हिरण्णपाग) रजतसिद्धि की, (६४ मुवण्णपाग) सुवर्णसिद्धि की, गजप्रश्नीय एव समवायाग में कथित मगिपाक और धातुपाक का समावेश यहीं करना चाहिये । (६५ मुत्तखेड) सूत्र-डोरा से सेल्ने की, (६६वट्टखेडं) वर्त-रस्सी पर सेलने की, यहाँ पर समायागोक्त-(चम्मखेड) चमडा से ग्मेलना-इसका भी समावेश प्रज्ञप्ति । अहियान ठरेस (दिट्रिज) युद्धनी मने 'राजप्रश्नीय' सूत्रमा सतावत (असिजुद्व) तसारथी युद्ध ४२वानी समावेश थयेा छ ५५ (निजुद्ध) भयुद्धनी, ५ (जुद्धाइजुद्ध) मा माहि प्रक्षेपपूर्व [धा भारीने] महायुद्ध
पानी, ५७ (मुद्विजुद्ध) मुष्टियुद्ध ४२वानी, ५८ (वाहुजुद्ध) माथी युद्ध ४२पानी, ५८ (लयाजुद्ध) सतायुद्धनी,२शत [स] वृक्ष ५२ यडीने नीयथा 6 सुधा વૃક્ષને લપેટી લે છે તેવી જ રીતે ધા જે યુદ્ધમાં મામેના ચોધાના શરીરને ગાઢરૂપથી પીડા કરી જમીન ઉપર પાડી દે છે અને તેના ઉપર ચડી બેસે છે તે લતાયુદ્ધ छ, तेनी, १० (ईमत्य) धुशासनी, 'ईस थ' मा प्राकृत शवायी धुशा मम લેવું જોઈએ નાગબાણ આદિ દિવ્ય અસ્ત્ર આદિનુ સૂચક જે શાસ્ત્ર છે તેનું નામ
धुशास तेनी, १(उपाय) छराथी युद्ध पानी, २ (धगुम्वेय) धनुनी , १३ (हिरण्णपाग) २४तमिद्धिनी, १४ (सुवण्णपाग) सुपसिद्धिनी, 'राजप्रत्रीय'