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पोवृषवर्षिणी टीका सु ४५ अभ्यडपरिग्राजकषिपये भगवद्गीतमयो सयाद ६०३ वासजायगं जाणित्ता सोभणंसि तिहिकरणदिवसणक्खत्तमुहत्तंसि कलायरियस्स उवेणहिति ॥ सू ४५॥ । मूलम्-तए णं से कलायरिए तं दडपडणं दारगं लेहाइयाओ 'दारय' दारफ-कुमारम , 'अम्मापियरो' अभ्यापितरौ 'माइरेगढ़वासनायग' सातिरेकाटपर्पजातक-किंचिदधिकाटवपाणि जातानि यस्य स तथा त, किंचिदधिकाष्टवर्पवयस्कमियर्थ , 'माणित्ता' जावा 'सोभणमि'गोभने--शुभकारके 'तिहिकरणदिवसनक्रवत्तमुहुत्तसि' तिथिकरणदिवस नक्षत्रमुहर्ते 'कलायरिस्म' कलाचार्यस्य 'उवणेहिति' उपनेप्यत --द्वासप्तनि फलाजानप्राप्तये कागिसकस्य समीप नेप्यत इत्यर्थ ॥ मू० ४५ ॥
टीका-'तए ण' इत्यादि । तए ण से कलायरिए' नत म्बलु स कलाचार्य 'न दडपडण्ण' तं दृढप्रतिज दृढप्रतिजनामक 'दारग' दारक 'लेहाइयाओ' लेखादिका ,
'त ददपडण्या दारग' इत्यादि।
(त दढपडण्ण दारग) पश्चात् उस दृढप्रतिज्ञ नामक बालक को (अम्मा पियरो) उसके माता-पिता (साइरेगट्ठवासजायग जाणित्ता) जन आठ वर्ष से कुछ अधिक वय का जानेंगे तब वे उमे (सोभणसि तिहि-करण-दिवस-णक्वत्त-मुहुचमि कलायरियस्स उवणेहिति ) शुभ तिथि, शुभ करण, शुभ नक्षत्र एव शुभ मुहर्त में कलाचार्य के पास ७२ कलाओं का ज्ञान प्राप्त कराने के निमित्त ले जावेगे। सू ४५ ॥
'तए ण से कलायरिए' इत्यादि । (तए ण) इसके बाद (से कलायरिए) वह कलाचार्य (त दढपइण्ण 'त दढपइण्ण दारग' त्यादि
(त दृढपण्ण दारग) त्या२ पछी ते प्रतिज्ञ नामना माने (अम्मापियरो) तना माता-पिता (साइरेग-वास-जायग जाणित्ता) क्यारे २५8 ५२सयी ४६७ पधारे उभरने लगे त्यारे तेमा तेन (सोभणमि तिहि-करणदिवस-णस्यत्त-मुहत्तसि कलायरियस्स उवणेहिति) शुमतिथि, शुस २४, शुभ દિવસ, શુભ નક્ષત્ર, તેમજ શુભ મુહૂર્તમાં કલાચાર્યની પાસે ૭૨ કળાઓનું જ્ઞાન પ્રાપ્ત કરાવવા નિમિત્તે લઈ જશે (સ. ૫)
'तए ण से कलायरिए' इत्यादि (तए ण) त्या ५०ी (से कलायगिए) ते सायाय (त दडपडण्ण दारग)