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पीपपणी टीका ३७ अम्पडपरिजय विषये भगवद्गीतमयी साद ५९१
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य दिपणे णो चेव णं अदिपणे, से वि य हत्थ -पाय- चरुचमस - पखालणट्टयाए पिचित्तए वा णो चेव णं सिणाइत्तए । अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स कप्पड मागहए य आढए जलस्स डिग्गाहिए, से वहमाणए जाव णो चैव णं अदिष्णे,
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'से वि य हत्य-पाय- चरु - चमस-पक्सालणट्टयाए पिचित्तए वा तदपि च हस्तपाद - चरु - चमस - प्रक्षालनार्थाय पातु वा, चर पानविशेष, ' णो चेव ण सिणाइत्तए ' नो चैन स्नातुम् | 'अम्मडस्स ण परिव्वायगस्स कप्पड' अम्बस्य स्खलु परित्राजकस्य
कल्पते 'मागहए य आढए जळस्स पडिग्गाहित्तए' मागध चादक जलस्य प्रतिग्रहीतुम्, 'सेवि य वहमाणए जाव णोचेर ण अदिणे' तदपि माने यावत् नो चैव खल्वदत्तम्, ' से 'त्रिय सिणाइत्तए ' तदपि च नातुम्, 'णो चेव ण हत्य-पाय- चरु-चमस
हादिया हुआ होता है, विना दिया हुआ नहीं। ( से वि य हत्थ-पाय-चरु- या पितिए वा ) दिया हुआ भी यह जल हस्त, पाद, चरु (पान विशेष) ए चमस के प्रदालन के लिये अथवा पीने के लिये हा कल्पता है, (णो सिणा उत्तए) स्नान के लिये नहीं । (अम्मडग्स पण परिव्वायगस्स कप्पर मागहए य आढए जरम पडिग्गाहित्तए) इस अम्पट परिवाजक को मगधदेशमबंधी आढकप्रमाण जल ग्रहण करना कल्पता है ( से वि य वहमाणए जाव णो चैत्र णं अदिण्णे ) वह भी बहता हुआ यावत् दिया हुआ है। कल्पता है, जिना दिया हुआ नहीं । (सेविय सिणा इत्तर णो णहत्य-पाय-चर-चमस- पक्खालणट्टयाए ) वह भी स्नान के लिये
य इत्थ-पाय-रु-चमस-पासालणट्टयाए पिबित्तए वा ) हीधे होय ते पशु पाली, હાથ પગ, ચરુ, તેમજ અમસને ધેાવા માટે અથવા પીવા માટે જ ક૨ે છે (ચરુ, थभस मे पात्रविशेषना नाभो छे ) (णो सिणाइत्तर) स्नान भाटे नहि ( अम्मडस्स ण परिव्वायम्स कप्पइ मागहए य आढए जलस्स पडिग्गाहिए ) मा अजड़ परि बाउने भगधद्देश- समधी साद प्रभाशुभ ग्रह ४४येछे ( से विय हम जाव णो चेव ण अदिष्णे) ते यश हेतु होय ते येछे) ( यावत्) आये होय ते उदये छे ययेषु न होय तेषु नहि ( से वि य' सिणाइत्तए ना er of हत्य-पाय-रु- चमस - पकखालणट्टयाए ) ते अस्नाम भाटे ४ उत्ये ि