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पोयूपपिणी टोकास ३१ अम्बपरित्राजकविपये भगवद्गीतमयोः संघाद. ५७९ खओवसमेणं ईहाहामग्गणगवेसण करेमाणस्स वीरियलद्धी वेउव्वियलद्धी ओहिणाणलडी समुप्पण्णा ।तए णं से अम्मडे परिवायगेतीए वीरियलडीए वेउबियलडीए ओहीणाणलडीए ग्वनावसमेण' तटावरीयाना कर्मणा वीर्य क्रियान्यवपिज्ञानावरणीयाना क्षयोपशमेन,
दा-वृहा-मग्गणनापेमणं करमाणम्स हा यह-माण गरेपण पुर्वत -तर-ईहामनिजानभेद नामजायादिविशेषरुपनारहितसामान्यज्ञानोत्तर विशेषनिवार्थ विचारणा इयर्थ , न्यूर -अपोह -सामान्यज्ञानोत्तरफाल विशेषनिश्चयाय विचारगाया प्रवृत्ताया तदनु गुणदोषविचार गाजनिती निश्चय । मार्गग-जीवादिपनार्थम्य यथावस्थितपम्पान्वेपगम् , गवेषण=3 मार्गगानन्तरमनुपलभ्यन्य जीपादिपदार्थस्य मर्मत परिभाषनम , पा समाहारस्तत् तथा, तत् हत अन्यडस्य परिमाजकन्ये यन्वय । 'वीरियलद्वी' वीर्यलन्धि , 'वेउनियलदी' पैनियलन्धि 'ओहिणाणल्द्धी समुप्पण्णा' अवधिज्ञानन्धिश्च समुन्पना । 'तए णं आवरण कर्मों के (खोपसमेण) क्षयोपशम से (ईहा-हा-मग्गणगवेमण करमाणम्म ) ईहा-नाम एव जायादिरूप कल्पना से रहित सामान्य ज्ञान के बाद विशेषम्प से निश्चय करने की चेष्टा-विचारधारा, व्यूह-सामान्य ज्ञान के बाद विशेष निश्चय के लिये विचारणा करने पर गुणढोप के विचार से होनेवाला निश्चय--अवायरूप ज्ञान, मार्गग-यथावस्थित जोपाटिक पदार्थ के स्वरूपका अन्वेषण, एव गवेषण-मार्गग के बाद अनुपलभ्य जीपादिक पदायों के सभी प्रकार से निर्णय करने की तरफ तपरतारूप गवेपण (करेमाणस्स) करने से (वीग्यिलद्धी वेउन्वियलद्धी ओहिणाणल्दी समुप्पण्या) वीर्यलन्धि, वझियलब्धि, तथा अधिगनलन्धि उत्पन्न हो गई । (तए ण से माप दीना (सओसमेण) क्षयोपशमया (ईहा-चूहा मग्गणगोसण करमाणस्स) घडा-नाम तमा ति महिनी ४८५नाथी રહિત સામાન્ય જ્ઞાન થયા પછી વિશેષરૂપથી નિશ્ચય કરવાની ચેષ્ટાવિચારધાગ, બૃહ-સામાન્યજ્ઞાન બાદ વિશેષ નિશ્ચય કવ્વા માટે વિચારણા ઠર્યા પછી ગુણદેવના વિચારથી થવાવાળા નિશ્ચય-અવાયરૂપ જ્ઞાન, માર્ગયથાવસ્થિત જીવ-આદિક પદાર્થના સ્વરૂપનું અન્વેષણ, તેમજ ગષણ-માર્ગ પછી અનુપલભ્ય જીવ આદિ પદાર્થોને સર્વ પ્રકારથી નિર્ણય કરવાની તરફ तस्पता३५ गवेषध (करमाणस्स) साथी (वीरियलद्धी वेनियलद्धी ओहिणाणलद्धी समुप्पण्णा) पीय सन्धि, वैडियसम्धि, तथा अपधिज्ञाननिध
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