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औपपातिकमा एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे जाव घरसए वसहि उवेइ । सच्चे णं एसमहे, अहंपि णं गोयमा। एवमाइक्वामि जाव एवं परूवेमि-एवं खलु अम्मडे परिवायए जाव वसहि उवेइ ।। सू० २९ ।। स्त एवमाइक्खइ' हे गौतम ! यसल स बहुजनोऽन्योऽन्यम् एवमारयाति, यावदेवं प्ररूपयति, 'एवं खलु अम्मढे परिवायए कपिल्लपुरे जार घरसए वसहि उवेड' एव खन्वबड परिवाजक काम्पिन्यपुरे यानद् गृहशते वसतिमुपैति-इति यत्वया पृच्छयते । 'सच्चेण एस. मट्टे' सत्य खन्वेपोऽर्थ ।' अपिण गोयमा! एवमाइक्खामि अहमपि खल गौतम एवमाग्व्यामि, 'जाव एव परूवेमि' यावदेव प्ररूपयामि अरूपगा करोमि, 'एव खल अम्मडे परिवायए जाय वसहि उवेइ ' एव खलु अम्बड परिबाजको यावद् वसतिमुपैतिगृहशताद् भिक्षा गृह्णाति, गृहशते वसतिं करोति, इति । सू० २९ ॥ (ज) जो (से) वे (बहुजणे) बहुत से लोग (अण्णमण्णस्स) परस्पर दूसरे से ( एवमाई
खइ जाव परूवेद) इस प्रकार कहते हे यावत इस प्रकार प्ररूपित करते हैं कि ( एवं खलु अम्मडे परिवायए कपिल्लपुरे) ये अम्बड परिव्राजक कपिल्लपुर नगर में (जाव घरसए वसहि उवेइ ) सौ घरों में भिक्षा लेते है और सौ घरों में निवास करते हैं, सा (सच्चे णं एसमढे) यह बात बिलकुल ठीक है। (अहं पिण गोयमा एवमाइक्खामि) गौतम ! भै भी इसी तरह कहता हू (जाव एवं परूवेमि) यावत् इसी तरह प्ररूपित करता हू फि (एव खलु अम्मढे परिवायए जाव वसहि उवेइ) ये अम्बड पारव्राजक सौ घरों में आहार करते हैं और सौ घरों में निवास करते हैं । सू० २९॥ गौतम ! (ज) रे (से) तमो (बहुजणे ) । सोही (अण्णमण्णस्स) ५२२५२ ४ मीनन (एवमाइक्सइ जार परूवेइ) मा मारे ४७ छ यावत् या सरे ५३पित ४२ छ । (एव सलु अम्मडे परिव्वायए कपिल्लपुरे) त सम परिवा४४ पिसपुर नगरमा (जाव घरसए वसहिं उवेइ) से धरोथी लिक्ष वे छ भने सो घरोभा निवास ४रे छता (सच्चे ण एसमढे) मा वात मिसद ही छ । (अहपि ण गोयमा । एवमाइक्सामि) गौतम ५ मेरी रीत ४६७ (जाय एव परवेमि) यापत् वी शते प्र३चित ५३ छ (एव सलु अम्मडे परिव्याया जार वसहिं उवेइ) मे 83 परि રાજક તે ઘરમા આહાર કરે છે અને સે ઘરમાં નિવાસ કરે છે (જૂ ૨૯)