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__ पोषयपिणी टीका सू २६ अभ्यरपरिमाजशिष्याणा सस्तारग्रहणम् ५७३
रामि-त्ति कहु सलेहणाझूसणाझुसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया पाओवगया कालं अणवकंखमाणा विहरंति ॥ सू० २६ ॥
मुलम्~-तएणं ते परिवायगा वहुई भत्ताई अणसणाए छेदेति, छेदित्ता आलोइयपडिकता समाहिपत्ता कालमासे कालं आरोग्गीकरणे या जोषणा-प्राति तया जुष्टा हेविता , भत्तपाणपडियाटविया' प्रयाग्यातभक्तपाना , 'पाओवगया' पादपोपगता =वृक्षानिप्प दतया स्थिता , 'काल अणवाग्यमाणा' कालमनवकाक्षान्त , केचिद वेदनाविकन्ग मरणमिच्छन्ति तेपा निषेधार्थमेतद्वाक्यम् , पम्मृता विहरन्ति-अम्बटपग्विजगिष्या इति ॥ मृ० २६ ॥
टीका-'तए ण ते परिमायगा' इत्यादि । 'तए ण ते परिवायगा' तत खल ते परिमाजका -अम्बदशिया कृतकायोसा-पाड भत्ता अणसणाए उदेति' वहनि भक्तानि अनशनेन छिन्दन्ति, 'छेदित्ता' रित्या 'आलोठयपडिक्ता' आरोचितप्रतिकान्ता -गुर जनस्य समीपे कृताऽऽलोचना , प्रतिकान्ता -पापस्थानापश्चा
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सर के सर (भत्तपाणपडियाइविपया) भक्त एव पान का प्रयायान करके (पाओवगया) वृक्ष की तरह निश्रेष्ट होकर (काल अगवग्यमाणा विहरति) मरन की इच्छा नहीं करते हुए स्थित हो गये । सू० २६ ॥
'तए ण ते परिवायगा' इत्यादि ।
(तए ण) इसके बाद (ते परिवायगा) उन समस्त पारबाजकोने (बहई भत्तार) चार्ग प्रकार के आहार का (अणसगाए) अनगन, द्वारा (छेडेति) छेद कर निया, (छेदित्ता) छेद करने के बाद (आलोइयपडिकता) अपने अतिचारों की
पाननु प्रत्याज्यान गन (पाओगया) वृक्षनी हे निवस यान(काल उणकसमाणा विहरति) भवानी छ नही ४२ स्थित 25 गया (सू २)
'तए ण ते परिव्यायगा' इत्यादि
(तए ण) त्या पछी (ते परिव्वायगा) तथा परिवार (पट्टा भत्ताइ) याश्य प्रा२ना माहारना (अणमणाए) मनशन द्वारा (छेटेंति)
री दी। (छटित्ता) ४ीधा पछी (आलोइयपडियन्ता) पाताना मति यानी साना 2 की तमा तनाथी निवृत्त च्या (समाहिपत्ता)