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औपपातिकपत्रे मुज्जाण-अगड-तलाग-दीहिय-वप्पिणगणोववेया नंदणवण-सन्निप्रहरणशीला , विडम्बका:=पभाषादिभि परानुकरणेन हसनहासनशीला , कथकाःविविधकथाकारका गायका वा, प्लवका उत्प्लवनशीला -नयादितरणगीला वा, लासका: - रासमीडाकारिण , आचक्षका शुभाशुभशकुनाभिधायका , लङ्काः-दार्धवाशिरसि क्रीडनशीला , महा:-चित्रफलक दायित्वा भिक्षाग्राहिण , तूणारन्तः तूगाभिधानवाद्यवादकाः, तुम्बवीणिकाः-वीणावादका , अनेके च ते तालाचराः-काष्ठकरतालादिभिस्तालान् ददतो लोकानाऽऽचरन्ति अनुरञ्जयन्ति ये ते तथा, एतैर्नटादितालाचरान्तैरनुचरितायुक्ता यासा तथा । 'आरामु-ज्जाण-अगड-तलागदीहिय-चप्पिणगणोववेया' आरामोद्यानावटतडागढापिकाकथाकहानियों के कहने मे कुशलमतिवाले कथाकारकों से, अथवा विविध प्रकार कीगानकला में निपुण सगीतविद्याके जाननेवालों से, प्लवक-कूदनेवालसि अथवा तैरने की कलामें पारगत अनेक तैराकोंसे, लासक-रास रचनेमे निपुण व्यक्तियों से,आचक्षक-शुभ और अशुभ शकुन को प्रकट करने मे विशेषदक्ष नैमित्तिका से, लस-बडे बडे यासों के अग्रभाग पर चढकर वहा अनेक प्रकारकी क्रीडा करके दिसानेवाले नटो से, मस-सुन्दर चित्रों को दिखलाकर जनतामे भिक्षा ग्रहण करनेवाले भिक्षुकोसे, तूणइल्ल-तूणा नामके वाद्यविशेष को बजाने वाले बाजीगरों से, तुम्बवीणिक-वीणा के बजाने मे विशेष पटु वीगावादको, एव तालाचर-काष्ठ-- करताल आदिद्वारा ताल देकर लोगोंको अनुरजित करनेवाले तालाचरों में अनुचरिता-वह नगरी कभी भी शून्य नहीं रहती थी। ( आरामु जाण अगंड-तलाग-दीहिय-चप्पिणगणो
४शन सावे सेवा ७३पामाथी, कथक-मने अनी ४था-पात उवामा કુશલમતિવાળા કથાકારોથી, અથવા વિવિધ પ્રકારની ગાળામાં નિપુણ એવા सभातथी, प्लवक-पानी विधामा पूर्ण निपुणता प्रास रेसी डाय तेका छनारासाथी, अथवा तपानी जमापा गत मने साथी, लासक-रास २यपामा નિપુણ વ્યક્તિઓથી, આચશુભ અને અશુભ શકુન કહેવામાં બહુજ દક્ષ એવા નૈમિત્તિકેથી, મોટા મોટા વાસની ટોચ ઉપર ચઢીને ત્યા અનેક પ્રકારની કીડા કરીને દેખાડવાવાળા નટોથી, મ-સુદર સુંદર ચિત્રોને દેખાડીને લોકે पाथी लिक्षा अड ४२वापामा लिक्षुमाथी, तृणइल-तूप। नामना वाचविशेष मा ५५ गशथी, तुम्पीणिक-पीर नामा विशेष प्रवीण मेवा वी418
थी, तेमा तालाचर-४१४४२तास माहिदा तानाजीने भुशी ४२वापामा ताटायरथी अनुचरिता-ते नगरी ४ही पर शून्य रहेता नहाती (आरामु-ज्जाणअगह-तलाग-दीहिय-यपिण-गणोववेया नदणवणसन्निभप्पगासा) साराभा-भारती