________________
८८८
पीयूषपषिणो-टो। स १९ अम्बडपरिव्राजकाचारवर्णनम चेव णं अपरिपए, से वि य णं दिण्णे णा चेव णं अदिपणे, से वि य पिवित्तए, णो चेव णं हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्वालणटाए सिणाइत्तए वा। तेसिं णं परिव्वायगाणं कप्पड मागहए स्वच्छ कल्पते, नो चैव सल अबहुप्रसन्नम् , ' से रिय परिपूर णो चेाण अपरिपूए' नदपि च जल परिपूत प्रवेण गालित कल्पते, नो चैत्र खन्वपम्पृितम् , ‘से मि य ण दिण्णे णो चेत्रण अदिण्णे' तटपि च पल रत्त कपते, न चैत्र खच्चदत्तम्, ‘से वि यपिपित्तए पोचेवण हत्य-पाय-चरु-चमस-परखालणढाए सिणाटत्तए वा तदपि च पातु कल्पते नोचैर सलहरतपादचरचमसप्रक्षालनार्यम, तन-हस्ती पाटौ च प्रसिद्धौ।चर = अन्नपात्र, यस्मिन् भिक्षान स्थाप्यते । चमसो-दर्विका-परिवेपणपात्र 'चमचा' इति प्रसिद्धम् , है, अतिनिर्मल नहीं होन पर ग्राह्य नहीं हो सकता । (से वि य परिपए णो चेव ण अपरिपूए) अतिनिर्मल होने पर भी वन से छाना जाने पर ही कल्पित कहा गया है, अनग्ना पानी अपने उपयोग में लाने का निषेध है । (से नि य ण दिण्णे णो चेवण अदिण्णे) छना हुआ होने पर भी किसी दाता के द्वारा दिया गया ही ग्रहण करने के योग्य कहा है, विना दिया हुआ नहीं। (से वि य पिवित्तए णो चेव हत्य-पाय-चरुचमस-पकग्वालणद्राए) दिया गया भी जल का उपयोग केवल पीने के लिये ही करने की आजा है, हाथ-पैर, चरु-भाजन पान एप चमचा धोने के लिये उसका उपयोग पिहित नहीं है, अर्थात हाथ पैर आदि धोने के काम मे उसको नहीं ला सकते, (सिणारत्तए वा) अबहुप्पसण्णे) -२ डापा छत ५४Y सतिनि डाय तर ग्राह्य २४ श छ, गतिनिर्भण न य तो बाह य शतु नथी (से वि य परिपूए णो चे ण अपरिपूए) मतिनिर्भज डावा छत पर पथी कामे હોય તે જ કલ્પિત કહેલુ છે વગર ળાયેલું પાણી પિતાના ઉપયોગમાં पानु निषिद्ध छ (से वि य ण दिण्णे णो चेन ण अदिण्णे) गाणे हाय છતા પણ કોઈ દાતા દ્વારા અપાએલુ જ ગ્રહણ કરવા યોગ્ય કહેવામાં આવ્યું छ, पर सीधेयु नहि (से वि य पिपित्तए णो चेन हत्य-पाय-चन-चमस-पस्सालणटाए) माघेदुखाय तवा सन। उपयोग पर पीवा माटे ४ ४२વાની આજ્ઞા છે, હાથ–પગ, ચરૂ–જન પાત્ર, તેમજ ચમચા ધોવા માટે તેને ઉપયોગ કરે વિહિત નથી, અર્થાત્ હાથ પગ આદિ દેવાના કામમાં तन 6पयोगीजाय नडि (मिणाइत्तए वा) तमन तना हयाग नान