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तुडियाणि वा अंगयाणि वा केऊराणि वा कुंडलाणि या मड वा चूलामणिवा पिणद्धित्तए,णण्णत्थ एगेणं तंविएणं पविवरण तेसिं णं परिवायगागं णो कप्पइगंथिमवेतिमपरिमसघाइयो। चउठिवहे मल्ले धारित्तए, णपणत्थ एगेणं कण्णपरेणं। तेसि णं त्रुटिफानि वा, अगदानि केयूरान् वा, कुण्डानि वा, 'मुकुट वा, चुडामणि वा पिनदुम्, हारादीनि तेपा परिवाजकाना : न कल्पन्ते परिघातुमित्यर्थः । 'णणत्याएगेगं तंविएवं पवित्तएण' नाऽन्यत्रैकस्मात्तानमयात्पवित्रकात्-ताम्रमयमङ्गलोयक पवित्रकनामक तु तेषा । परिधतुं कल्पत इति भाव । 'तेसिं परिचायगाण, णो कप्पड़ मथिम-वेटिम पूरिम-सघाइमे चउबिहे मल्ले धारित्तए' तेपा खलु परिवाजकाना नो कल्पन्ते प्रन्थिमवेष्टिम-परिम-समातिमानि चतुर्विधानि मान्यानि धारयितुम्-प्रन्थेन पन्थनेन निवृत्त निर्मित मालारूप प्रन्थिमम् ; वेष्टेन वेष्टनेन निर्वृत्त वेष्टिमम्, , पूरिम-पूरणेन - निर्वृत्तम्, सघातेन निर्वृत्त सङ्घातिमम् , एतानि चतुर्विधानि माल्यानि धारयितु न कल्पन्ते इत्यर्थ , गण्यस्थ एगेण कण्णपूरेण' नान्यत्रैकस्मात्कर्णपूरकात्-एक पुष्पमय कर्णपूर तेषा न निषिद्धमिति भाव । रण विशेष हैं), प्रालय, तीन लरका हार, कटिसूत्र, दशमुद्रिकाएँ, कटक, त्रुटिक-बाजूबध, अगद, केयूर, कुडल, मुकुट, चूडामणि, इनका पहिरना भी इन साधुओं को कल्पता नहाहै। एक ताबे की अंगूठी ही इन्हे हाथ की अगुली में धारण करना कल्पता है। ('तेसि ण परिवायगाण णो कप्पइ गथिम-वेढिम-पूरिम-सघाइमे चउबिहे मले धारित्तए, णण्णत्थ एगेण कण्णपूरेण ) इन परिवाजकों को गूथ 'कर बनाई गई, वेष्टित" कर बनाई गई, एवं परस्पर दो पलों को सयुक्त करके बनाई गई, ऐसी चार प्रकार की' मालाओं का पहिरना भी कल्पता नहीं है। एक पुष्पों का रचित कर्णफूल ही कान में ७२, ४टिसूत्र, श मुद्रिाय। (वास), ४८४, ४ि-
माधम २, " ક ડલ, મુકુટ, ચૂડામણિ, એ પહેરવુ પણ આ સાધુઓને કલ્પતુ નથી એક तामान ही तो पायमाजीभाधारण ४२वी ४८पछि (तसिं ण परिवायगाण णो कप्पइ-गथिम-वेढिम-पूरिम-सघाइमे पबिहे। मल्ले धारितए । णण्णय एगेण कण्णपूरेण) मा परिमाने सुथाने मनावती, वेष्टित ४शन मना । વેલી. સ ચા ઉપર પૂરીને બનાવેલી તેમજ પરસ્પર બે યુનેને જોડીને બના “ તેથી એવી ચાર પ્રકારની માલાઓ પહેરવી કપતી નથી. સિફ પુષ્પોનું એક 1
भने ४६पनीय छ (तसिं ण परिग्यायगाण णो कप्पा अनलुएणमा