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औपपातिकको मूलम्---से जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा-होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जपणई सड्ढई थालई हुंवउद्या दंतुक्खलिया उम्मजगा संमज्जगा निमज्जगा सपक्खालगा
टीका-~'से जे इमे' इत्यादि । 'से जे इमे' अब ये इमे 'गगाकूलगा' गङ्गा कूलका गङ्गातटाश्रिता 'पाणपत्या' वानप्रस्था =धानप्रस्थाश्रमवर्तिन 'तावसा भवति' तापसाभवन्ति त जहा' तद्यथा-'होत्तिया' होत्रिका =आग्निहोरिका , 'पोतिया' पोत्रिका - वस्त्रधारका , 'कोत्तिया' कौत्रिका =भूमिशायिन , 'अण्णई यज्ञकिना-यज्ञकारका , सड्ढई' श्राद्धकिन =श्राद्धकारका 'थालई' स्थालकिन =भोजनपात्रधारका ,'हुवउट्ठा' कुण्डिकाधारिणा ,'हुवउट्ठा' इति देशीय शब्द , 'दक्खिलिया' दन्तोद्धखलिका =फलभोजिन , 'उम्म जगा' उन्मजका -उन्मजनमानेण-जलोपरि तरणमारेण ये स्नान्ति ते, 'सम्मजगा' सम ज्जका उन्मजनस्यैवाइसकृत् करणेन ये स्नान्ति ते, 'निमज्जगा' निमन्जका -स्नानाथ निमग्ना सिर्फ यहा इतनी ही है कि ऐसे जीव जो व्यन्तर देवों मे उत्पन्न होते है उनकी वहा स्थिति चौरासी हजार वर्ष की बतलाई गई है ।। स १२॥
'से जे इमे' इत्यादि
(से जे इमे) जो ये (गंगाकलगा वणपत्था तावसा भवति) गगा के तट पर रहनेवाले वानप्रस्थ तापस है, जैसे (होत्तिया) आग्निहोत्रिक, (पोतिया) पोत्रिक वस्त्रधारक, (कोत्तिया) कौत्रिक-भूमिशायी भूमि पर सोने वाले, (जण्णई) यज्ञकारक (सड्ढई) श्राद्धकारक, (थालई) भोजनपानधारक, (हुवउट्ठा) मुण्डिकाधारी, (दतुक्खलिया) फलभोजी, (उम्मज्जगा) एक बार पानी में डुबकी लगाकर स्नान करने वाले, (सम्मजगा) बार बार માત્ર અહી એટલીજ છે કે જીવ જે વન્તર દેવોમાં ઉત્પન્ન થાય છે તેની ત્યા સ્થિતિ ચોર્યાસી હજાર વરસની બતાવવામાં આવી છે (સૂ ૧૨)
'से जे इमे' छत्याह
(से जे इमे) २ मा (गगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवति) गाना तट ५२ पसना। पानप्रस्थ तापस खाय छ, रेवा (होत्तिया) मानिहात्रि४, पोतिया) पत्रि-सधा२४, (कोत्तिया) ठौत्रि-भूभिशायी-भूमि ५२ सुवा पाणा, (जण्णई) य१२४, (सड्ढई) श्राद्धा२४, (थालई) मानपात्रधा२४, (हवउदा) अधिारी, (दतुस्सलिया) सला, (उम्मज्जगा) सवार पालीमा उमड़ी भारीन स्नान ४२११, (सम्मज्जगा) पारपार हुमठी मारीने