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___ पोषधषिणो टोका स १३ घानप्रस्थादीनामुपपातविषये गौतमप्रश्न ५३३
दक्षिणकूलगा उत्तरकूलगा संखधमगा कूलधमगा मिगलुद्धगा हत्थितावसा उद्दडगा दिसापोक्खिणो वक्तवासिणो विलवासियो एव ये क्षण तिष्ठन्ति ते, 'सपक्वालगा' प्रक्षालका -ये मृत्तिकादिधर्षणपूर्वकमङ्गानि प्रक्षालयन्ति ते सप्रक्षालका , 'दक्षिणकूलगा' रक्षिणमूलका -ये गङ्गाया पूर्वाभिमुग्रगमनशीलाया दक्षिणतट ण्व वसन्ति ते, 'उत्तरकलगा' उत्तरकृलका -उत्तरतट एव ये वसन्ति ते, 'सग्वधमगा' शवमायका याववादका -गह्व वादयित्वा ये भुजते ते इत्यर्थ , 'कलधमगा' कुलमायका -ये कृले स्थित्वा शन्द कृवा भुञ्जते ते, मियलुद्धगा' मृगलुन्धका -व्याधनन्मृगमामजीविन , ' हत्थितावसा' हस्तितापसा -ये हस्तिन मारयिता तेनैव बहुकाल भोजनतो यापयन्ति ते, 'उद्दडगा' उद्दण्डका -उत्-ऊर्च दण्डा येपा ते उदण्डका , दण्डमूर्च कृत्वा ये सञ्चरन्ति ते इत्यर्थ , 'दिसापोक्खिणो' दिशाप्रोक्षिण =उदकेन दिश प्रोदय ये फलपुप्पादि समुचिन्वन्ति ते, 'वकवासिणो' वल्कवासस -वल्कानि-नरवच एव वासासि येषा ते तथा, 'दिलवासिणो' निलवासिन = दुमका लगाकर स्नान करनेवाले, (निमज्नगा) पानी में कुछ देर तक डबकर स्नान करने वाले, (सपरखालगा) मिट्टी आदि से अग को घर्पण कर स्नान करने वाले, (दक्षिणकलगा) गगा के दक्षिण तट पर वसने वाले, (उत्तरकूलगा) गगा के उत्तर नट पर वसने वाले, (ससपमगा) शसों को बजाफर भोजन करने वाले, (कलधमगा) नदी के तट पर बैठ कर शन्द कर के भोजन करने वाले, (मियलुद्धगा) व्याधोकी तरह मृग के मास को साने वाले, (हत्थितावसा) हाथी को मारकर उसके मास का भोजन करने वाले, (उद्दडगा) टडे को ऊचा करके फिरने वाले, (दिसापोक्खिणो) दिशाओं को जल से सिंचन करने वाल, (वकमासिगो) वृक्षा को छाल को पहिरने वाले, (विलवासिणो) भूमिगृह मे निवास स्नान ४२१tणा, (निमज्जगा) पाशीमा थोडीवार सुधी डूमीने स्नान ४२वावाणा, (संपक्सालगा) माटी मा ५ सगने घसीने स्नान ४२वा वाणा, (दक्सिण. कलगा) गगान क्षिय तट ५२ १सवापाणा, (उत्तरकूलगा) गाना उत्तर तट पर बसवावाणा, (ससधमगा) शपडीने सन २वापा, (फूलधमगा) नाना तट 6५२ अमीन ०६ ४रता ४२ती (मासता मास) लोगन
पावा, (मियलु द्वगा) शिशिनी पेठे भुगनु भास मावा, (हत्थितासा) हाथीने भागनतेना भानु भोपन २१ावा, (उद्दडगा) 3ाने आयो ४१ ५२पापा, (दिसापोक्सिणो) हिशामामा पाणी छावा वाणा, (वकनासिणो) वृक्षनी छाव पडेरवा पाणा, (लिमासिणो) भूभिडमा