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औपपातिक
जायको ऊहले, उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उपष्णकोऊहले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहले, समुप्पण्णसड्ढे समु
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माय इति भाव । 'जायकोऊडल्ले ' जातकुतूहल -जात उतृहरुम= औमुख्यं यस्य स जातकुतूहल, मत्कृतप्रश्नस्य कीदृशमुत्तरं भगवा वन्यति तन्द्रोमो मुक्यनानियर्थ, 'उप्पण्णसड्ढे उत्पननद्र - उपन्ना-विशेषेण जाता श्रद्धा यम्य स तथा यशश्रद्धाया स्वरूपस्य तिरोहितने जातवद्ध, तस्या स्वरूपस्य प्रादुर्भानि तु उपनद्ध - इति भाव । ' उप्पण्णसंसए' 'उपनसंगय, 'उप्पण्णकोऊहल्ले' उपन्नकुतूहल, ' सजायसड्ढे 'जातश्रद्ध, प्रकर्पादिवाचक स्यन्द, ततथ मजाता- निशेपतरेण उपन्ना श्रद्धा यस्य स मजातश्रद्र, 'सजायससए' सजातसराय, 'सजायको ऊहल्ले ' सजातकुतूहल, 'समुप्पण्णसड्ढे ' समुत्पन्नश्रद्ध समुपन्ना = सर्वथा सजाता श्रद्धा यस्य स तथा, प्रश्न का उत्तर न मालूम किस तरह का ढेगे ? इस बात को जानने को उत्कण्ठा उनके चित्त मे बढ़ी, क्यों कि (उप्पण्णसड्ढे ) भगवान के ऊपर ही उनके चित्त मे अतिशय श्रद्धा थी, अत उनसे ही निर्णय करने के लिये श्रद्धा उत्पन्न हुई । (उप्पण्णससए उप्पण्णकोकहल्ले सजायसड्ढे सजायससए सजायकोऊहल्ले समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णससए समुपण कोऊहल्ले) उत्पन्न-सय, उत्पन्न कौतुहल' - इत्यादि पदा द्वारा वाच्यार्थ में, अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा ज्ञान की तरह उत्तरोत्तररूप से विशेषता द्योतन करने के लिए सूनकार ने 'जात, उत्पन्न, सजात, समुत्पन्न' इन पदों का प्रयोग किया है। भगवान् गौतम को जो चित्त में तत्व के निर्णय करने की इच्छा जागृत हुई वह पहिले सामान्यरूप में ही हुइ, कारण कि उहे शय जो उपन्न हुआ था वह भी सामान्यरूप से ही हुआ था, इसी
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કેવી રીતે આપશે? એ વાતને જાણવાની ઉત્કંઠા તેમના ચિત્તમા વધી, કેમકે (उप्पण्णसड्ढे ) लगवानना उपरन तेभना वित्तभा अतिशय श्रद्धा हुती, हवे तेभनी पासेथी निर्णय ४२वा भाटे श्रद्धा उत्पन्न यह (उत्पण्णससप उप्प
को हल्ले सजाय सड्ढे सजायसस सजायको ऊहल्ले समुप्पण्णसढे समुष्णसस समुपणकोऊहल्ले) 'उत्पन्नम राय उत्पन्नमोतुडस' इत्यादि यहा द्वारा વામ્યાંમા, અવગ્રહ, ઈંડા, અવાય અને ધારણા જ્ઞાનની પેઠે ઉત્તરાન્તરરૂપથી विशेषताना प्राश साववाभाटे सूत्ररे 'जात उत्पन्न सजात समुत्पन्न' से होना પ્રયાગ કર્યો છે ભગવાન ગૌતમને જે ચિત્તમા તત્ત્વના નિણૅય કરવાની ઇચ્છા જાગ્રત થઈ તે પહેલા સામાન્યરૂપમાં જ થઇ હતી કારણ તેમને જે સ થય