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__ पोषषषिणो टोका स २ गौतमस्थामिनो भगवत्समीपे गमनम्
मूलम्-तए णं से भगवं गोयमे जायसढे जायसंसए मात्र, नियन्त्रितचित्तवृत्तिमानि यर्थ , 'सजमेण तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ' म्यमेन तपसाऽऽमान भावयन् चासयन् विहति ।। सू० १॥
टीका-'तए णं से' यादि । 'तए ण से भगव गोयमे' तत खल स भगवान् गौतम 'जायसढे' जातश्रद्ध -जाता प्राग्मृता मप्रति सामान्येन प्रवृत्ता श्रद्धा-तत्वनिर्णयविपयिका वान्छा यस्य स जातश्रद्ध , वश्यमाणतत्यपरिक्षानेच्छावानियर्थ, 'जायससए' जातम्यय -जात =प्रवृत्त मगयो यस्य स तथोक्त , सशयोत्पत्तिप्रकारस्वियम्-औपपातिकमून हि-अचागद्गस्योपागम्, तेनाचागङ्गप्रथमश्रुतस्कन्धस्य प्रथमाध्ययन प्रथमोदेशके य आमन उपपात उक्त , तस्मिन् विषये वक्ष्यमाणमायोपत्या जात बाहर इधर-उधर नहीं हो सकती है । मानमिक प्रत्येक वृत्तिया इस अवस्था में नियत्रित हो जाती है। ऐसे ये गौतम नामसे प्रसिद्ध इन्द्रभूति गणधर (सजमेण तवसा अप्पाण भावेमाणे विदरड) मयम एव तप से सदा अपनी आमाको भानित करते हुए विचरते थे|सू १॥
'तए णं से' इयादि।
(तए ण) परिपत् चले जाने के बाद (से भगव गोयमे) वे भगवान् गौतम (जायसड्ढे) कि जिनके चित्तमें तत्व को निर्णय करने के लिये वाञ्छा हुई, कारण कि इन्हें (जायससए) इस प्रकार का मशय उद्भूत हुआ था कि यह औपपातिक सूत्र, आचाराग सूत्र का उपाग है, आचागग सूत्र के प्रथम अध्ययन के प्रथम उदेशक में जो आत्मा का उपपात रहा है सो किस प्रकार से कहा है ? (जायफोऊहल्ले) अत भगवान मेरे सशयित તેમજ અત કરણની વૃત્તિઓ બહાર આમતેમ જઈ શકતી નથી માનસિક પ્રત્યેક વૃત્તિઓ આ અવસ્થામાં નિયત્રિત થઈ જાય છે એવા આ ગોતમ नाभ प्रसिद्ध द्रभूति गथुध२ (संजमेण तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ) સયમ તેમ જ તપથી સદા પિતાની આત્માને ભાવિત કરતા કરતા વિચગ્લા उता (सू १)
'तए णं से' त्यादि _(तए ण) परि५६ न्याली गया पछी (से भगव गोयमे) ते सगवान गौतम (जायसड्ढे) वित्तमा तत्पनी निय पानी पाछ। २४, रY ठे तभने (जायससए) मा प्रधान सशय सत्पन्न थयो तो हैं मा मोषाતિક સૂત્ર, આચારાગ સૂત્રનું ઉપાગ છે આચારાગ સૂત્રના પ્રથમ અધ્યયનના પ્રથમ ઉદેશકમાં જે આત્માને ઉપપાત વર્ણવ્યો છે તે કેવા પ્રકારથી કહ્યો छ ? (जायकोऊहल्ले) वे मगवान भाग मा सशयन। प्रश्न उत्तर नजर