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पोयूपयषिणो-टीका र ५९ परिपद स्वस्वस्थानगमनम् भंते । णिग्गंथे पावयणे, एवं सुप्पण्णत्ते, सुभासिए, सुविणीए, सुभाविए। अणुत्तरे ते भंते । निग्गंथे पावयणे । धम्म णं आडक्खमाणा तुम्भे उवसमं आडक्खह, उवसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह, विवेगं आडक्खमाणा वेरमणं आइक्खह, वेरमुभाषितम्-भावन्यजनात , 'सुविणीए' सुविनीतम्-शिष्येषु सुष्टु विनियोजितत्वात् , 'सुभाविए' सुभावितम् मुटु भाषितम्-तत्वकथनात् , 'अणुत्तरे' अनुत्तर-नाख्त्युत्तर यस्मात् तद्-अनुत्तर-मर्वश्रेष्ठ, तर भदन्त निम्रन्य प्रवचनम् । 'धम्म ण आइक्वमाणा तुम्भे उपसम आरक्वह' धर्म सन्याचक्षाणा यूयमुपशमम्-क्रोधादिनिरोधम् आरयाथ= कथयथ, 'उपसमं आटक्वमाणा विवेग आइक्खह' उपशममाचक्षाणा विवेकमाख्याथ, कोपादिनिरोध कथयन्तो यूय विवेक-हयोपादेयविवेचन कथयय, 'विवेग आइक्खमाणा वेरमण आठवह '-विवेकमाचक्षाणा निरमणमारयाय, निरमणम्-आणातिपातादिनिवर्त
मुन्दर रूप से पदार्थों के स्वरूप को प्रकट किया, (मुविणीए) आपने शिष्यों को खून समझाया, (सुभाविए) जीवादि सभी तत्वो को आपन अच्छी तरह से समझाया । (अणुत्तरे ते भते 'णिग्गथे पावयणे) हे भदन्त आपका यह निम्रन्य प्रवचन सर्वोत्कृष्ट है। हे भदन्त । (धम्म ण भाइक्खमाणा तुम्भे उवसम आटक्खह) धर्मका उपदेश करते समय आप उपशम भार क्रोधातिनिरोध का उपदेश करते हैं, (उवसम आइक्खमाणा विवेगआटक्खह) क्रोधादिक के निरोध का उपदेश करते समय हयोपादेयरूप विवेक का उपदेश देते है, (विवेग आठक्खमाणा वेरमण आइक्खह) विवेक का उपदेश करते समय प्रागातिपातादिक से विरक्त होने का भी उपदेश करते है, (वेरमण आरक्खमाणा अमरण पावाण कम्माण आइ
माघे भूम सु. ३५थी पहाथीना सपने ८ उर्या (सुपिणीए) माये शिष्याने भूम यमालच्या (सुभाविए) पाहिमा तत्वाने भारी सभालच्या (अणुत्तरे ते भते 'णिग्गथे पावयणे) हे महन्त | मापनु 21 निर्धन्य प्रयन भोट छ है महन्त । (धम्म ण आइस्यमाणा तुन्भे उपसम आइक्सह) ધર્મનો ઉપદેશ કરતી વખતે આપે ઉપશમભાવ-ક્રોધાદિનિધને ઉપદેશ ध्या छ (उपसम आइस्यमाणा विवेग आइम्सह) डोपामिना निरोधने। 8५हेश ७२ती मते य-पाय ३५ विवेनो उपहेश ४या छ (विवेग आइक्समाणा वेरमण आइक्सह) विवेउन पहेश ४२ती मते प्रातिपातास्थिी