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पोपयपिणी टोका र ५८ भगरतोऽन्तिरे बहूना प्रव्रज्यादि ग्रहणम १८५ जाव-हियया उद्याए उट्टेड, उहिता समणं भगव महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेइ, करिता बदइ णमंसड, वंदित्ता णमंसित्ता अत्थेगइया मुडे भवित्ता अगाराओ अणणिसम्म ' धर्म श्रुना=आपये, निगम्य-दि भृत्या, 'हट्ठ -तुट्ठ-जार-हियया' दृष्ट-तुष्टयावद्-दन्या 'उठाए उठे' उयया उथानगत्या उत्तिष्ठत्ति 'उद्वित्ता' उयाय, 'समणस्स भगाओ महावीररस' अमगस्य भगवतो महावीरस्य 'तिरखुत्तो' निकृव , 'जायाहिणपयाहिण करेड' आदक्षिणप्रदक्षिण करोति, 'करित्ता' कृत्वा, ‘वदइ णमसइ ' वन्दते नमरयनि, 'पदित्ता णमंसित्ता' वन्दि वा नमस्यित्वा, तत्र--' अत्थेगइया' सन्त्येकके केचित् 'मुंडे भवित्ता' मुण्डा भृत्वा 'जगारामो' अगाराद्-गृहात्गृह परित्ययेत्यर्थ , 'अणगारिय' अनगारिता साधुता प्रबजिता प्राप्ता , 'अत्थेगडया' (अतिए) समीप (पम्म) धर्म का व्यारयान (सोचा) सुनकर, एव अच्छी तरह उसे (णिसम्म) हृदयगम कर (हट्ठ-तुद्व-जाव-हियया) बहुत ही अधिक हर्पित एव स्तुष्टचित्त हुई, (उढाए उठेद) पश्चात् अपने २ आमन से उठी, (उद्वित्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेइ करित्ता बदद णमसइ) उठ कर फिर उसने श्रमण भगवान महावीर को तानवार आदक्षिणप्रदक्षिणपूर्वक वन्दन-नमस्कार किया, (वदित्ता णमसित्ता जत्थेगटया मुढे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पन्नध्या) बटना-नमस्कार कर के किननेक मनुष्योने मुटित होकर, अपने २ घर को छोडकर उनके पास अनगार बने, अर्थात् दीक्षा वारण की। (अत्यंगट्या पचाणुन्बट्य सत्तसिक्खापदय दुवालसविह गिहिपरिसा) मनुष्यानी मला (समणस्स) श्रम (भगरओ) भगवान (महावीरस्स) भडावीना (अंति) सभा (धम्म) श्रुतयारित्र३५ धनी देशना (सोन्चा) सामान तभी सारीत तेन (णिसम्म) हय गम उगने (हट-तुट्ठ-जाव हियया) र एपित तमर सत५ पाभी, (उदाए उद्वेइ) 0 पोतपोताना मासनेयी Gl, (उद्वित्ता समग भगर महावीर तिम्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेइ, करित्ता वदइ णमसइ) 0२, ५ तभणे अभए सगवान महावीरने त्रशुवार माइक्षि-महक्षिण-पूर्व पन नमार उर्या, (वदित्ता णममित्ता अत्येगइया मुटे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पञ्चइया) पना-नभ७२ ४शन 32 મનુષ્યએ મુડિત થઈને પિતાના ઘર છોડીને તેમના પાસે અનગાર यया, अर्थात् बीक्षा सीधी (अत्थेगइया पचाणुव्वइय सत्तसिक्सावइय दुवाल