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पोयूपपिणो टोका स ५७ अगारधर्मनिरूपणम् माउसो। अगारसामाइए धम्मे पण्णते। एयस्स धम्मस सिक्खाए उवहिए समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए हवइ ॥ सू० ५७॥ कर्भधारये--अपश्चिममारणान्तिकमले पना, नम्या जूपगा=सेवना-मग्णकाले सलेखनानाग्ना तपसा गरीरस्य कषायादीनाञ्च कृशाकरण, तस्या आराधना=निरवा उन्नतया सपादनम् ॥ १२॥ 'अयमाउसो' अयमायुप्मन् । 'अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते' अगारसामयिको धर्म प्रजम 'एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवासए वा समणोफिर भी यहा जो उसे अपश्चिम कहा है वह अमगलपरिहार के निमित्त से जानना चाहिये । क्यों कि " अन्तक्रियाधिकरण तप फल सफलदर्शिन स्तुवते" तप का फल स्लेखनापूर्वक प्राणों का विसर्जन करना प्रभुने बतलाया है, अत यदि यह अन्तिम समय आचरित नहीं होती है तो जीवनभर की गई व्रताराधना तपस्या आदि एक प्रकार से निष्फल ही समझना चाहिये। अत इस अपेक्षा से यह अपश्चिम-सर्वोत्कृष्ट कही गई है। यह सलेखना (मारणान्तिकी) मरण के समय धारण की जाती है। काय और कपाय आदि जिसके द्वारा अथवा जिसमें कृश किये जाते है उसका नाम म्लेखना है। यह मलेखना भी एक तप-विशेष है। टसे प्रेम से धारण करना चाहिये इस अर्थ को घोतित करने के लिये ही " जूपणा" यह पढ ठिया गया है । (अयमाउसो! ) इस प्रकार हे आयुष्मन् । यह (अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते ) गृहस्य का धर्म सिद्धान्त मे कहा गया है । (एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्टिए समणोवासए वा समणोबासिया वा विहरमाणे आणाए छे ते समग परिहारनु निमित्त त मे भ "अन्तक्रियाधिकरण तप फल सकलदर्शिन स्तुवते" तपनु ४८ सेमना-पूर्व प्राशन विसन કરવુ એમ પ્રભુએ બતાવ્યું છે આથી જે આ અતિમ સમયે આચરવામાં નથી આવતી તે જીવનભર કરેલી વ્રત–આરાધના તપસ્યા આદિ એક પ્રકારે નિષ્ફલ જ માનવી જોઈએ આમ આની અપેક્ષાએ આ અપશ્ચિમ-સેકૃષ્ટ उसी छे २ सपना (मारणान्तिकी) भरना सभये धारण ४२शय छे કાય અને કષાય આદિ જેના દ્વારા અથવા જેમાં કૃશ કરાય છે તેનું નામ સ લેખન છે આ લેખના પણ એક તપવિશેષ છે તેને પ્રેમથી ધારણ ४२वी ने सा अर्थ ने घोतित (प्रजाशित) ४२का भाट "जपणा" में ५६ मा छे (अयमाउसो) मा प्रकारे हे मायुभन्। । (अगारसामा