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पोषयपिणो-टोका स .६ भगयतो धर्मदेशना
४६१ णिग्गंथे पाव्यणे सच्चे अणुत्तरे केवदिए ससुद्धे पडिपुण्णे णेयाइत्यन्तेन ग्रन्थेन । 'धम्ममाडक्सइ' धर्ममा याति-'इणमेव णिग्गंथे पावयणे सचे' ददमेव नम्रन्थ प्रवचन मयम्-इद प्रयतया विद्यमान, नेप्रे य-निम्रन्याना व्यभावप्रन्थिरहिताना “यमिना मम्बन्धि प्रवचनम् आगम , सत्य-मट्भ्यो हित वास्तविकञ्च । 'अणुत्तरे' अनुत्तरम्-नास्युत्तर यस्मात , नास्मा प्रधानतममन्यदस्तीति भाव , केवलिए' कैलिफ-केवलिप्रणीतम्-अद्वितीय वा, 'समुद्धे मशुद्रम् कपादिभि शुद्र सुवर्णमिव निदोषम्, 'पडिपुण्णे' प्रतिपूर्णम्-सर्वथा समग्र-मूत्रापेक्षया मानाविन्द्वादिमि , अर्थापेक्षया चाकाङ्क्षाऽव्याहागदिभिर्वर्जितम् , 'णेयाउए' नैयायिकम् न्यायानुगत प्रमाणाऽवाचितम्, 'सलमत्तणे' अन्यकर्तनम् मायादिगन्यच्छेदनक्षमम्-तद्भावभावितानां है। 'पम्माटम्सट' भगनान न प्रफागन्तर से भी धर्मोपदेश किया। जैसे-(णमेव गिग्गथे पावयणे सच्चे ) प्रयक्षतया विद्यमान यह निग्रन्या-द्रव्य एव भावरूप ग्रन्थि से रहित स्यमियों का प्रवचन-आगम स य-भत्र्यों का हितकारक एव यथार्थ है। (अणुत्तरे ) यह अनुनर हे-उससे उत्तर-प्रधान और दूसरा कोई नहा है । ( केवलिए) कारण कि यह केवलनानी द्वारा प्रगीत हुआ है, इसलिये यह अद्वितीय है। (संसुद्धे) कपादिक द्वारा शुद्ध किये हुए सोने के समान यह शुद्ध है। (पडिपुण्णे) यह सर्वथा प्रतिपूर्ण है, न तो मूत्र की अपेक्षा से इसमें माना एव पिंदु आदि के अयाहार की आवश्यकता है और न अर्थ की अपेक्षा से टसमे आकाक्षा आदि के अव्याहार को आवश्यकता है, अथात् सर प्रकार से यह पूर्ण है। (णेयाउए ) म भगनपदिष्ट आगम में किसी भी प्रमाग से बाबा नहीं आती है। (सलकत्तणे) मायामिथ्याव एव निदान शयों का द्वा। महशित २ छ 'धम्ममाइक्सई' लगवाने प्रगती पy धपिश ४. भ. (डगमेन णिग्गये पारयणे सन्चे) प्रत्यक्षतया (ननी मामे) વિદ્યમાન (મજુદ) આ નિર્ગ-દ્રવ્ય તેમજ ભાવ રૂ૫ ગ્રથિી રહિત મય મીઓના પ્રવચન-આગમ સત્ય-ભવ્યોને માટે હિતકારક તેમજ યથાર્થ છે (अणुत्तरे) मा अनुत्तर में मानाथी उत्तर-प्रधान (भुज्य) पोन std नथे (कपलिण) ४२१ 3 2 उपशानी | eीत थयेलु (श्याम) छ ते भाटे २मा मलिताय छ (ससुद्धे) पाहि १२॥ शुद्ध ४२ मोना ने ते शुद्ध छ (पडिपुण्णे) सहा परिपू -सनी अपेक्षा तेभा માત્રા તેમજ બિ૬ આદિના અધ્યાહારની આવશ્યક્તા નથી અને અર્થની અપે ક્ષાથી તેમાં આવાણા આદિના અધ્યાહારની પણ આવશ્યક્તા નથી તમામ પ્રકારે ये पूछ (णेयाउए) मा भगप-पटि मागममा आई पत्र प्रभाथा