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चिणो-टीका स ५- भगवतो धर्मदेशना
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लियाए परिसाए इसिरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अगसयाए अणेगसयवंदाए अणेग सयवंद परिवाराए
मह महालिया तस्याथ महातिमहत्या 'परिसाए' परिपत्र = सभाया, 'उसिपरिसाए' रूपपरिषद -- रुपन्ति जानन्ति अवविज्ञानादिनेति रुपय - अतिशयज्ञानयन्त, तेपा परिमत्सभा तस्था, 'मुणिपरिसाए' मुनिपरिपट - मुणन्ति मन्यन्ते वा प्रतिजानन्ति सर्वसावधव्यापारोपरतिम इति मुणयो-मुनयो वा सर्वनिरतिमन्त, तेपा परिषत् तस्या मुणिपरिपटो, मुनिपरिषदो चा, 'जपरिसाए' यतिपरिषद - यतन्ते दशविधयनिधर्मे इति यतय । तथा चोक्तम्
एवं यः शुद्धयोगेन, परित्यज्य गृहाश्रमान् । सयमे रमते नित्य स यतिः परिकीर्तितः ॥ १ ॥
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इति तेपा यतीना परिपत- तस्था, 'देवपरिसाए' देवपरिषद -- देवाना = भवनपयादिचतुर्विधदेवाना परिपत् तस्या, 'अणेगसयाए' अनेकशताया -अनेकानि तानि यस्यासानेता तस्या, 'अणेगसयवंदाए' अनेकशतवृन्दाया = अनेकशतानि वृन्दानि समूहायस्या साsनेता तस्या, 'अणेगसयचंद परिवाराए' अनेकशतवृन्दपरिपुत्र कूणिक राजा को, तथा - ( सुभद्दापमुहाण देवीण ) सुभद्राप्रमुख राजरानियों को, (तीसे य ममहालियाए ) तथा उस वडी भारी ( परिसाए ) सभा को, (इसिपरिसाए ) रुपियों-अवधिज्ञान से पदार्थों को जानने वालों की सभा को, (मुणिपरिसाए) मुनियों-सर्वसावध व्यापारों के मन वचन एव काय आदि से त्यागियों की सभा को, ( जइपरिसाए ) गृहाश्रम का परित्याग कर जो मन, वचन, काय के शुद्धयोग से स्यम में अर्थात दश प्रकार के यतिधर्म में नित्य यत्नवान होते हे वे यति है, उनकी सभा को, (देवपरिसाए ) भवनपति आदि चतुर्निकाय के देवों की सभा को, (अणेगसयाए ) _अनेकशतम्ख्यावाली (अणेगसयादा ) अनेकगत वृन्द ( समूह ) वाली ( अणेग
ना पुत्र कृषि रामने, तथा-(सुभदापमुहाणं देवीण) सुभद्रा प्रमुख राष्ट्रराशी ओने (तीसे य ममहालियाए) तथा ते गहु भोटी (परिसाए) सलाने, (इसि परिसाए) ऋषियो- अषधिज्ञानथी महाथेने नयुवावाजाभोनी सलाने, (मुणिपरिसाए) भुनियो भर्व सावद्यव्यापारोने भन पयन तेभन डाया साहिथी त्याग ४२नारनी सलाने, (जइपरिसाए) गृहस्थाश्रमना परित्याग उरी के भन,
વચન, કાયના શુદ્ધયોગથી સ યમમા અર્થાત્ દશ પ્રકારના તિધમ મા नित्य यत्नवान रखे छे ते यति छेतेन सलाने, (देवपरिसाए) लवनयति माहि यतुनिभयना हेवोनी सलाने, (अणेगसयाए) ने शत (सेो) सभ्या