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भोपातिक करिता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता कूणियरायं पुरओ कह ठिडयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिउडाओ पजुवासंति ॥ सू० ५५ ॥
मूलम्त ए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रणो भंभसारपुत्तस्य सुभद्दापमुहाणं देवीणं तीसे य महइमहाभगवतो महावीरस्य विकृत्व आदक्षिणप्रदक्षिण कुर्वन्ति, कृत्या वन्दन्ते नमस्यति, वदित्वा नमस्यित्वा, 'कृणियराय पुरओ कह ठिइयाओ चेव' कूगिकराज पुरत कृत्वा स्थिता एवं 'सपरिवाराओ' सपरिवारा -परिजनसमैता, 'अभिमहाओ' अभिमुसा भगवदृष्टिपये, "विणएणं पजलिउडाओ पज्जुनासति' विनयेन प्राञ्जलिपुटा -कृताञ्जलिपुटा पर्युपासते । सू० ५५ ॥
'तए णं' इत्यादि । 'तए ण' तत =द्वादशविधपरिपदुपस्थितिसमनन्तर खल 'समणे भगव महावीरे' श्रमणो भगवान् महावीर 'कूणियस्स रण्णो भभसारपुत्तस्स' कूणिकस्य राज्ञो भभसारपुत्रस्य 'सुभद्दापमुहाण देवीण' सुभद्राप्रमुखाणा देवीनाम्-'तीसे पश्चात् वदना एव नमस्कार किया, (वदित्ता णमसित्ता कूणियराय पुरओ कुट्ट ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएण पजलिउडाओ पज्जुवासंति) वेदना नमस्कार कर चुकने के बाद फिर वे, कूणिक राजा को आगे कर के खडी खडी विनयपूर्वक हाथ जोड कर भगवान की सेवा करने लगीं ॥ सू ५५॥
'तए ण ' इत्यादि ।
(तए ण) बारह प्रकार के परिषद जम जाने पर (समणे भगव महावीरे) श्रमण भगवान् महावीर ने (कूणियस्स रण्णो भभसारपुत्तस्स) भभसार अर्थात् श्रेणिक (वदित्ता णमसित्ता कूणियराय पुरओ कट्ट ठिइयाओ चे सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पजलिउडाओ पज्जुवासति) पन नम२४१२ ४२N सीधा पछी वजी त કણિક રાજાને આગળ કરીને ઉભી ઉભી વિનયપૂર્વક હાથ જોડીને ભગવાનની સેવા કરવા લાગી (જૂ ૫૫)
"तए ण" त्यादि
(तए ण) मा२ मारनी परि५४ ल ता (समणे भगव महावीरे) अभय सापान महावीरे (कूणियस्स रणो भभसारपुत्तस्स) लसार अर्थात श्रेषि