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________________ - पीयूषयपिणो-टीका स ५४ फूणिकस्य भगवदुपासना ४३. माणे पज्जुवासड । माणसियाए-महयासंवेगं जणडत्ता तिव्वधम्माणुरागरते पज्जुबासइ ॥ सू० ५४॥ __मूलम्-तए णं ताओ सुभद्दप्पमुहाओ देवीओ अंतो अंतेउरंसि पहायाओ जाव पायच्छित्ताओ सव्वालंकारविभूसिसम्बधिन्या पर्युपासनया, 'महयासवेग' महामवेग महद्वैराग्य ‘जणइत्ता' जनयित्वा 'तिन्व-धम्मा-गुराग-रत्ते' तीव-धमा-नुराग-रक्त सन् 'पज्जुवासइ' पर्युपास्ते अनेन वीतरागाण पुप्पधूपादिमि सावधपूजा निराकृता ॥ सूत्र ५४ ॥ ___टीका-'तए ण ताओ' इत्यादि । 'तए ण' तत खलु 'ताओ सुमद्दप्पमुहाओ' तत तदनन्तरम्-मुगद्राप्रमुखा 'देवीओ' देव्य =राज्य अतो अतेउरंसि' अन्तरन्त पुरस्य स्त्रीभवनमध्ये, 'हायाओ जाव पायच्छित्ताओ' स्नाता यावत् प्रायसना इस प्रकार की-(महयासंवेग जणइत्ता तिव्य-धम्मा-णुराग-रत्ते पज्जुवासइ) प्रभु के मुख से धर्म का उपदेश सुन कर राजा के हृदय में परम वैराग्य उत्पन्न हुआ और धर्मानुराग से प्रेरित होकर वे प्रभु की उपासना करने लगे। इस सूत्र से वीतरागों की पुष्पधूप आदि से सापद्य पूजा करना सर्वथा निपिद्ध है-यह सूचित होता हे ॥ सू० ५४ ॥ 'तए ण ताओ इत्यादि । (तए ण) इसके बाद (ताओ मुभदप्पमुहाओ देवीओ) वे सुभद्राप्रमुख देविया मी (अतो अतेउरसि) अत पुरस्थ स्त्रीभवन के मध्यवर्ती स्नानागार में (व्हायाओ जाव भायर ४२ता (पज्जुवासइ) तमनी Suसन ४२५॥ साया (माणसियाए) २०नो लगाननी मानसि उपासना मा प्रकारे ४२री- (महयासवेग जणइत्ता तिव्य-धम्मा-गुराग-रत्ते पञ्जुवासइ) प्रभुना भुमथी धर्मन। पश सासળીને રાજાના હૃદયમાં પરમ વૈરાગ્ય ઉત્પન્ન થયું, અને ધર્માનુરાગથી પ્રેરિત થઈને તેઓ પ્રભુની ઉપાસના કરવા લાગ્યા આ સૂત્રથી વીતરાગની પુષ્પ ધૂપ આદિ વડે સાવદ્યપૂજા કરવી એ સર્વથા નિષિદ્ધ છે તે સૂચિત થ ય છે (सू० ५४) "तए ण ताओ" इत्यादि (लए ण) त्या२ ५७ (ताओ सुभद्दप्पमुहाओ देवीओ) सुभद्रा प्रभुम देवीमा पY (अतो अतेउरसि) सत पुरमा सीमनना भध्यक्ती स्नानागारमा (हायाओ जाव पायच्छित्ताओ) स्नान शेन तु तथा मतिभथी,
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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