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કરર खंडियगणा ताहिं इटाहिं कताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं, मणाभिरामाहिं हिययगमणिजाहि वग्गृहि जय-विजय-मंगलसएहि अणवरयं अभिणंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासीलागलिका =कर्षका 'मुहमगलिया' मुखमगलिका --मुग्पे मद्गल येषामस्ति ते मुग्यमनलिका =शुभवचनवाटका , ' बद्धमाणा' बर्द्धमाना स्कन्धेप्यारोपिता पुरपा, 'पूसमा णवा' पुष्यमानवा =मागधा , 'सडियगणा' सण्डिकगणा -छात्रसमुदाया । एते सर्वे 'ताहि ' ताभि =विवक्षिताभि , 'इटाहि । इटाभिर्वान्छिताभि , 'कताह ' कान्तानि - कमनीयामि , 'पियाहि । प्रियामि , 'मणुण्णाहिं' मनोज्ञाभि =सुन्दरतया मनोऽनुवूलाभि , ‘मणामाहि' मनोऽमाभि -मनसा अन्यन्ते-गम्यन्ते इति मनोऽमास्तामिमनसाऽवगमनीयाभि -हृदयाह्लादकत्वात् , 'मणाभिरामाहि ' मनोऽभिरामाभि , ' वग्गृहि' वाग्भि 'जय-विजय मगल-सएहिं 'जय-विजय' इत्यादिभिर्मङ्गलकारकवचनगतै 'अणवस्य ' अनवरतम् , 'अभिणदंता य' अभिनन्दयन्तश्च, 'अभित्युणता य' अभिष्टुबन्तथ ते पूर्वोक्ता अर्थाऽर्थिकादयो विरुदावलीपाठादिना राजान प्रसादयत ‘एर बयासी' एवमवादिपु -'जय जय णदा' जय जय नन्द ! नन्दयति आनन्दयति देने वालों ने, (वद्धमाणा) कधों पर बैठे हुए अनेक पुरुपों ने, (पूसमाणया) विरुदावली बोलन वालों ने (संडियगणा) छाउगगोंने (ताहिं इटाहिं कताहिं पियाहिं मणुण्णाहि मणामाहि मगाभिरामाहि) अपना २ भाषा के अनुसार इष्ट, कमनीय, प्रिय, मनोज्ञ, हृदयाहाटक, मनोभिराम (हिययगमणिज्जाहि) एव हृदयगम (वग्गूर्हि) वचनों से (जयविजयमंगलसएहिं ) कि जिनमे जय और विजय के ही मगलकारक शब्दों का समावेश था, (अगवरय) अच्छी तरह (अभिणदता प अभित्युणता व एव वयासी) अभिनन एव स्तुति करते हुए इस प्रकार कहना प्रारम किया-(जय जय णदा जय मन यधामाय (नगलिया) मन मेड़तामे (मुहमगलिया) गने शुभाशावाद पापाजाया (वद्धमाणा) ४५ ५२ मेडेसा मन ५३षामे (पुसमाणया) सिहावली मनाससाणे (सडियगणा) छात्रगामे (ताहिं इटाहिं कताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभिरामाहि) पातपातानी लाषामनुसार ७, दमनीय, प्रिय, मनाश, ध्यास, मनोनिगम, (हिययगमणिज्जाहिं) तेभा य म (वग्गूहि) क्या दास (जय विजय मगल्सएहि)
माय अने वियना म४।२४ २०होना समावेश हो, (अण घरय) सारी रात (अभिणदता य अभित्थूणता य एव वयासी) मलिन इन तमा